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________________ ३८८ उपदेश-प्रासाद - भाग १ दिन में हम संघ को लूटेंगें । यह सुनकर राजा क्षण तक चिन्ता सहित स्थित हुआ। तब किन्ही सुभटों ने इस प्रकार से पूछा कि- तुमने चोरों को देखें है ? हम गोधिपुर राजा के सेवक हैं । राजा ने संघ की रक्षा के लिए भेजा हैं । यह सुनकर राजा ने सोचा कि- यदि चोरों को दिखाऊँगा, तो ये उनको मार डालेंगें और यदि नही कहूँगा तो चोर संघ को लूटेंगें । मुझे यहाँ क्या करना उचित है ? इस प्रकार से सोचकर कहा कि- मैंने तो नहीं देखे हैं परंतु कहीं पर तुम ही देखो अथवा उनको देखने से क्या ? तुम संघ का ही रक्षण करो । उसे सुनकर वें संघ में गये । तब चोर आकर उसे कहने लगें कि- तुमने हमारे जीवन का रक्षण किया है । आज के बाद हम चोरी और हिंसा नहीं करेंगें । तुम इस लाभ को ग्रहण करो इस प्रकार से कहकर चोर स्व-स्थल पर गये । हंसराजा आगे जाते हुए किन्ही घुड सवारों के द्वारा इस प्रकार से पूछा गया कि- तुमने हमारे स्वामी के वैरी हंस को कही पर देखा है ? हम उसका विनाश करेंगें । उसने असत्य के भय से कहा किमैं ही हंस हूँ। जब वेंक्रोध से राजा के सिर पर खड्ग को छोड़ने लगें, तब तलवार के सैंकड़ों ही टुकड़े हुए और राजा के ऊपर पुष्प वृष्टि गिरी । हे सत्यवादी ! तुम चिर समय तक जयवंत हो, इस प्रकार से कहते हुए प्रत्यक्ष होकर यक्ष ने कहा कि- हे राजन् ! मैं आज ही तुम्हें जिन-यात्रा कराता हूँ, तुम इस विमान को अलंकृत करो । विमान में चढ़कर जिन-यात्रा और अर्चा कर यक्ष के सान्निध्य से शत्रुको जीतकर उसने स्व-राज्य को भोगा । क्रम से प्रव्रज्या लेकर स्वर्ग में गया । ____ पक्षियों में हंस इस प्रकार के शब्द को वरा और उससे वें पानी के द्रह में हर्ष को धारण करने लगें। जिस श्रीहंसराज ने इस प्रकार के नाम को धारण करते हुए सत्य रूपी समुद्र से अप्सराओं के सौख्य को
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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