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उपदेश-प्रासाद - भाग १ वीरविभु ने कहा कि__कौशाम्बी नगरी में सेटुक नामक ब्राह्मण रहता था जो शतानीक राजा की सेवा करता था । एक दिन संतुष्ट हुए राजा ने उसे 'तुम अपनी इच्छा के अनुसार माँगों' इस प्रकार वर दिया । उसने भी पत्नी की बुद्धि से नगर में प्रति घर में दीनार सहित भोजन को माँगा। राजा ने भी थोड़ा हँसकर उसे स्वीकार किया । वह दक्षिणा के लोभ से बार-बार वमन कर और भोजन करता हुआ कुष्ठी हुआ । तत्पश्चात् राजा ने और कुटुंब ने उसका अपमान किया । उसे जानकर क्रोधित हुआ उसने एक बकरे को मँगवाकर अपने कुष्ठ के रस से भीगे हुए तृण आदि को उस बकरे से भक्षण कराया ।
एक दिन उसने पुत्र आदि से कहा कि- हमारें कुल-क्रम से आयी हुई यह वृत्ति हैं कि जो वृद्ध होता हैं वह पुत्र आदि को बकरे के माँस भोजन को देकर पश्चात् दीक्षा लेता हैं । पुत्र आदि ने भी उसे स्वीकार किया । इस प्रकार के छल से अपने कुटुम्ब को कुष्ठ से दुष्टमय बनाकर रात्रि के समय में गृह से बाहर निकला और वन में भ्रमण करते हुए नाना औषधि मूलवालें धावन पानी के पान से नीरोगी हुआ । पश्चात् गृह में आकर वह ब्राह्मण पुत्रों से कहने लगा कि- मेरे अपमान के फल ऐसे इस कुष्ठ को तुम देखो । वार्ता को जानकर नागरिकों से निन्दित किया हुआ राजगृह नगर में आकर नगर प्रदेश के द्वार पर स्थित हुआ।
तभी यहाँ पर समवसरण होने पर मेरे वंदन के लिए उत्सुक हुआ द्वारपाल उस सेटुक को वही छोड़कर समवसरण में आया । सेटुक भी क्षुधा से संतप्त बना नगर-देवी के आगे रखे हुए बहुतसारी रोटीयाँ और पक्वान आदि आकंठ तक भोजन कर प्यासा बना जल के ध्यान से मरकर नगर-द्वार की वापी में मेंढक हुआ।