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उपदेश-प्रासाद - भाग १
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सत्तहत्तरवा व्याख्यान अब इस व्रत के पाँच अतिचारों को कहते है कि
इस व्रत का स्वीकार करनेवाले को मिथ्या उपदेश का त्याग करना चाहिए । बिना विचारे किसी को भी अभ्याख्यान न कहे।
___ मिथ्या उपदेश-असत् उपदेश है । व्रत ग्रहण करनेवाले को पर पीडाकारी वचन असत्य ही है, जैसे कि- गधा, ऊँट आदि को वहन कराओ, चोरों को मारो इत्यादि । सज्जनों को हितकारी वह सत्य है इस प्रकार की व्युत्पत्ति से सत्य भी पर हिंसात्मक वाक्य झूठ ही है । जो कि कहते है कि
सत्य भी पर पीड़ाकारी वचन को न कहे, कारण कि लोक में भी सुना जाता है कि कौशिक नरक में गया था ।
कौशिक नामक लौकिक ऋषि सत्यवादी इस प्रकार की प्रसिद्धि से प्रसिद्ध तप का आचरण करता था। एक बार चोर गाँव को लूँटकर मुनि के आगे होकर वन में भागें । उनके पीछे रक्षक आये । मुनि को देखकर कहा-तुम सत्यवादीपने से सत्य कहो, चोर कौनसे मार्ग में गये हैं ? मुनि ने सोचा कि
शुद्धि पूछते हुए को अशुद्ध कथन में बड़ा पाप लगता है, क्योंकि मृगी ने भी इस पाप को स्व-मस्तक पर नहीं लिया था।
- इस प्रकार से स्मृति में कहे हुए दृष्टांत का विचार कर उसने चोरों का स्थान दिखाया । पश्चात् रक्षकों ने उनको विनाशित किया । ऋषि नरक में गया ।
अन्य उदाहरण यह है
एक परम-ऋषि वन में तप से तप रहे थे । एक दिन शिकारीयों से त्रासित हुए हिरण उसके आगे होकर वन में गये । उन्होंने पूछा- हिरण कहाँ गये हैं ? दयावंत उस ऋषि ने कहा कि