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उपदेश-प्रासाद - भाग १ से यज्ञ करना चाहिए, अजों से यज्ञ करना चाहिए, इस अज पद का अर्थ बकरों से यज्ञ करना चाहिए, इस प्रकार से छात्रों के आगेकह रहा था। उसे सुनकर नारद ने निषेध किया कि
तीन वर्षवालें अनाज जो नहीं उगते हैं, वें अज हैं, इस प्रकार से गुरु ने हमको व्याख्या समझाई थी, हे बान्धव ! क्या तुम स्मरण नहीं करते हो?
__तब गर्व से पर्वत ने कहा कि- जो असत्य कहता हो उसकी जीभ छेदी जाय इस प्रकार से प्रतिज्ञा कर कहा कि- यहाँ पर वसु साक्षी है । पर्वत की माता वसु राजा के आगे जाकर वाद वृत्तांत के बारे में कहा । पुत्र-दान दो, इस प्रकार से याचना की । राजा ने कहा कि- हे माता ! जाओ, मैं तुम्हारे पुत्र का पक्ष करूँगा । दूसरे दिन वें दोनों परीवार सहित वसु के पास आये । राजा के द्वारा पर्वत के पक्ष में कूट साक्ष्य दी गयी । उससे देवता ने शिला के सिंहासन को चूर्ण किया। वसु को भू-पीठ के ऊपर गिराया और वह मरकर नरक में गया ।
सत्य से देवों ने नारद की स्तुति की और क्रम से वह स्वर्ग में गया । यह सुनकर पंडितों के द्वारा नित्य ही सत्य व्रत का आदर करना चाहिए।
देवता ने वसु राजा के पुत्रों को भी मार दीये । नगर के लोगों ने धिक्कार कर पर्वतक को निर्वासित किया । उसे महाकाल असुर ने ग्रहण किया । उसका यह संबंध है
अयोधन राजा के द्वारा निज पुत्री के स्वयंवर का प्रारंभ कीये जाने पर माता ने गुप्त-रीति से कन्या से कहा कि- तुम मेरे भाई के पुत्र मधुपिंग को ही वरना । सर्वराजाओं में मुख्य और रहस्य में स्थित सगर ने स्व-दूती के मुख से उसे जानकर कन्या को वरने का उपाय स्वपुरोहित से पूछा । शीघ्र कवि और कपट में चतुर उसने भी नूतन