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उपदेश-प्रासाद
भाग १
और गुंदों के द्वारा ऊपर के सिरे तक थाली को भरकर राजा के आगे रखा । यें मेरे शत्रुओं की आँखें है, इस प्रकार से क्रोध की बुद्धि से राजा हाथ से मसलकर छोड़ता था । इस प्रकार सोलह वर्ष के अंत में रौद्र ध्यान से मरकर सातवीं पृथ्वी में गया ।
वट और गुंदे को मसलने से रौद्र मतिवाला तथा हृदय में ब्राह्मणों के चक्षुओं का विघात धारण करता हुआ (हृदय से ब्राह्मणों के नेत्र-हति को धारण करता हुआ) अनुबंध हिंसा की बुद्धि की आधिक्यता से चरम चक्रवर्ती यहाँ से नरक में गया ।
इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में पञ्चम स्तंभ में इकहत्तरवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ ।
बहत्तरवाँ व्याख्यान
अब कोई हिंसक प्राणियों के घात से धर्म की इच्छा करते हैं, उनके प्रति यह शिक्षा वाक्य है कि
कोई कहते है कि प्राणों का घात करनेवाले प्राणियों को मारना चाहिए । एक हिंसक प्राणी के घात में बहुत प्राणियों का रक्षण होता है ।
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केवल हिंसक जीव सर्प, बिल्ली आदि है, उनको मारने में दोष नहीं है । वह अयोग्य है । इस प्रकार से विचार कीये जाने पर तो अहिंसक जीव आर्य क्षेत्रों में भी अल्प ही प्राप्त कीये जातें हैं । इसलिए ऐसी निर्ध्वंसता छोड़ देनी चाहिए । तथा कोई कहते है कि
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बहुत धान्य अथवा मत्स्यों को मारने से क्या ? उससे सुंदर यह है कि एक हाथी ही मारा जाये जिससे बहुत काल व्यतीत हो ।