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उपदेश-प्रासाद - भाग १
औषधि, पशु, वृक्ष, तिर्यञ्च तथा पक्षियाँ, यज्ञ के लिए निधन को प्राप्त हुए पुनः उन्नति को प्राप्त करतें हैं।
इत्यादि वेद में कही हुई हिंसा को कोई धर्म के रूप में मानते हैं, वह कैसे है ? सूरि ने कहा कि-हे राजन् ! वह सत्य नहीं क्योंकि स्कन्द-पुराण में अट्ठावनवें अध्याय में
वृक्षों को छेदकर, पशुओं को मारकर, रुधिर का कीचड़ कर, तिल और घी आदि को अग्नि में जलाकर, आश्चर्य है कि स्वर्ग की अभिलाषा की जाती है।
यज्ञ के लिए पशुओं का सर्जन किया गया हैं, यदि इस प्रकार से स्मृति कहती है तो स्मृति के जानकार मांस खानेवाले राजाओं को क्यों नहीं रोकते है ?
यदि यज्ञ के लिए पशु और ब्राह्मणों का सर्जन किया गया हैं तो सिंह आदि से देवों को क्यों तर्पण नहीं देते है ?
धर्म अहिंसा से उत्पन्न होता है, वह हिंसा से कैसे हो सकता हैं ? पानी में उत्पन्न होनेवाले कमल अग्नि से उत्पन्न नहीं होते हैं।
पद्मपुराण में भी
प्राणियों की हिंसा करनेवाले पुरुष, न वेदों से, न ही दानों से, न तपों से और न ही यज्ञों से किसी भी प्रकार से सद्-गति को प्राप्त करतें हैं।
सांख्यों के द्वारा
छत्तीस अंगुल आयाम और बीस अंगुल विस्तारवाले दृढ़ गलने को कर बहुत जीवों को विशोधित करें। तीस अंगुल मानवाले
और बीस अंगुल आयामवाले उस वस्त्र को द्विगुणा कर पानी को गालकर पीये । उस वस्त्र में रहे हुए जन्तुओं को जल के मध्य में स्थापित करें, इस प्रकार से पानी को पीये और ऐसा करनेवाला परम