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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ २६५ व्यवस्थित की हुई वस्तु दिखायी नहीं देती है, तो क्या वह नहीं हैं ? किंतु वह है ही ! चंद्र मंडल का पर भाग दिखायी नहीं देता हैं, आगे के भाग से अवरुद्ध हो जाने के कारण से । जान कर भी आवरण के कारण से अनुपलब्धि होती है, जैसे कि- सज्जनों को भी मतिमंदता से शास्त्र के सूक्ष्म अर्थ विशेषों की अनुपलब्धि होती हैं । तथा अभिभव से, जैसे कि- सूर्य आदि के तेज से अभिभूत हुए ग्रह और नक्षत्र दिखायी नहीं देते हैं, तो क्या उनका अभाव हुआ है ? इस प्रकार से ही अंधकार में भी घट आदि दिखायी नहीं देते हैं । तथा समानाभिहार से, यह आठवीं अनुपलब्धि हैं, जैसे कि- मूंग की राशि में मुट्ठी-भर मूंग अथवा तिल की राशि में मुट्ठी-भर तिल डाले गएँ और उपलक्षित कीये गये भी दिखायी नहीं देते है और जैसे कि जल में डाले गये लवण आदि दिखायी नहीं देते हैं, तो क्या उनका अभाव हुआ हैं ? इस प्रकार से आठ प्रकार से भी जैसे सत् स्वभाववाले भावों की भी अनुपलब्धि कही गयी है, वैसे ही पूद्गल,जीव आदि में विद्यमानता भी क्रम से होती हुई भी स्वभाव, विप्रकर्ष आदि से अनुपलब्धि ही है, इसे सर्वत्र मानना चाहिए । ___ यहाँ पर अन्य कहता है कि- यहाँ पर जो देशान्तर में गये हुए देवदत्त आदि दिखाये गये हैं, यहाँ वें हमें अप्रत्यक्ष होते हुए भी देशान्तर में गये हुए किन्हीं लोगों को प्रत्यक्ष ही हैं, उससे उनकी विद्यमानता प्रतीत होती है, किन्तु किन्हीं ने भी कभी-भी जीव आदि को नहीं देखें हैं, तो उनकी सत्ता कैसे निश्चित की जाय ? यहाँ पर उत्तर देते हैं कि- किन्हीं को प्रत्यक्ष होने से जैसे देवदत्त आदि विद्यमान निश्चय कीये जाते हैं, वैसे ही जीव आदि भी केवलियों को प्रत्यक्ष होने से क्या विद्यमान नहीं हैं, इस प्रकार से विश्वास करें । जैसे कि नित्य
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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