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उपदेश-प्रासाद - भाग १
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उत्पन्न नहीं होता हैं और नहीं मरण प्राप्त करता हैं । निश्चय से इस प्रकार से कहते हुए आचार्य ने नित्य एकांत पक्ष का ही स्वीकार किया है, अतः उसका निराकरण किया जाता है कि- पर्याय के पक्ष से अनित्य है- अशाश्वत हैं, जैसे कि पूर्व में कृत कराये हुए के स्मरण सेमैंने पूर्व जन्म में इस श्रीमद् अर्हद्-बिंब को कराया था और अब उसे देखने से ज्ञान की उत्पत्ति से स्मरण हुआ है । इसलिए ही उसके सपर्याय भाव से भवान्तर में गमन करने के द्वारा सादि-सान्त काल के भांगे से विशिष्टता से अनित्य है, इस प्रकार से इतना कहने से आत्मा नित्य है और उसके पर्याय अनित्य है और कभी-भी द्रव्य और पर्याय से रहित नहीं होता हैं, जो कि पूज्यों के द्वारा कहा गया है कि
___ पर्याय से रहित द्रव्य को और द्रव्य से वर्जित पर्यायों को क्या कभी किसीने, कौन-से रूपवाले अथवा किस मान से देखें हैं ?
दूसरी बात यह है कि- सद्भाव से सत्ता के आश्रय से शाश्वत है तथा अनादि-अनन्त केवल अवस्थायीपने से ध्रुव जाने, इस प्रकार से मन में निश्चय कर सम्यक्त्व स्थानता को जानें।
इस विषय में यह इन्द्रभूति का प्रबंध हैं
मगधदेश में गोबर ग्राम में वसुभूति ब्राह्मण था और उसकी पृथ्वी नामकी पत्नी थी। उन दोनों का पुत्र इन्द्रभूति था और वह स्व-बुद्धि से व्याकरण, न्याय, काव्य, अलंकार, वेद, पुराण, उपनिषद् आदि सर्व शास्त्रों का जानकार हुआ, परंतु वह वेद के अर्थ का चिन्तन करता हुआ जीव के संशय को धारण कर रहा था । वह स्व- आत्मा में सर्वज्ञ के आडंबर को वहन करता हुआ एक बार वीर के समवसरण में आया ।
तब जिन ने उसे आलापित किया कि- हे इन्द्रभूति ! तुम इस युक्ति से जीवाभाव को स्थापित कर रहे हो कि- यह जीव घडा, छत,