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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ २४६ इत्यादि युक्तियों से प्रतिबोधित हुआ यक्ष कुमार के ऊपर पुष्प-वृष्टि कर, तुम संकट में मेरा स्मरण करना, इस प्रकार से कहकर तिरोहित हुआ। एक दिन कुमार ने यक्ष की सहायता से दुर्जय कलिंग देश के राजा को युद्ध में जीता । अब एक दिन विक्रम राजा राजपाटिका में जाते हुए एक श्रेष्ठी के घर पर महोत्सव को देखकर प्रमोद को धारण करते हुए क्रीड़ा कर और वापिस आते हुए वही श्रेष्ठी के आवास में रोदन-क्रन्दन को देखकर के पूछा । तब किसी ने कहा कि- हे स्वामी! जन्म मात्र को प्राप्त हुआ इसका पुत्र अभी ही मर गया है, इसलिए लोग विलाप कर रहे है। इस प्रकार से सुनकर राजा ने वैराग्य को प्राप्त किया, जैसे कि बाल्य अवस्था से ही धर्म का आचरण करे, यह जीवन अनित्य है, हमेशा पके हुए फलों के समान पतन से भय हैं। इस प्रकार से विचारकर और स्व-पुत्र को राज्य के ऊपर स्थापित कर दीक्षा दिन में केवलज्ञान को प्राप्त कर परम-पद को प्राप्त किया। इसलिए विक्रम के समान भावनाओं के द्वारा सम्यक्त्व का सेवन करना चाहिए, जिससे कि दोनों लोक में महोदय शीघ्र से प्रकट हो सकें। इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद की वृत्ति में चतुर्थ स्तंभ में चव्वनवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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