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________________ उपदेश-प्रासाद भाग १ गया राजा चेलणा को लेकर वापिस जाने लगा । सुज्येष्ठा रत्न-करंडक को लेकर आ गयी । वहाँ पर उसने किसी को भी नहीं देखा । तब उसने ऊँचे स्वर में पूत्कार किया किचेलणा अपहरण की जा रही हैं। चेटक राजा का सैन्य उसके पीछे गया । उस युद्ध में शत्रु के द्वारा सुलसा का एक पुत्र मार दीये जाने पर अन्य इकतीस पुत्र की भी शीघ्र मृत्यु हुई । राजा ने भी शीघ्र से अपने नगर को प्राप्त कर चेलणा से विवाह किया। अब अपने पुत्रों के अमंगल को सुनकर नाग और सुलसा अत्यंत रोने लगें । तब अभय ने कहा कि १७४ जैन-मत के अर्थों को जाननेवालें और संसारिक भावना से युक्त आपको भी अविवेकियों के समान शोक-सागर में गिरना योग्य नहीं हैं । कुश के अग्र में रहे हुए जल-बिन्दु के समान, परिपक्व वृक्ष के पत्तों के समूह के समान और जल के बुद्बुद् के समान प्राणियों का यह देह और जीवन क्षणिक हैं। यह सुनकर वें दोनों दम्पती शोक रहित हुए । इस ओर चंपा में श्रीवीर भगवान को नमस्कार कर अम्बड़ परिव्राजक राजगृह नगर के प्रति चलने लगा । तब जिनेश्वर ने कहा कि- तुम सुलसा को हमारा धर्मलाभ कहना । वैसे ही कहूँगा इस प्रकार से कहकर और वहाँ आकर उसने सोचा कि - मैं इसके स्थैर्य की परीक्षा करूँ । तब प्रथम दिन गाँव के पूर्व नगर-द्वार में वह वैक्रिय शक्ति से चार मुख और हँस वाहनवाला और अर्धांग से सावित्री को धारण करनेवाला साक्षात् ब्रह्मा हुआ । सुलसा के बिना सभी नगर वासी उसे नमस्कार करने के लिए आये । द्वितीय दिन वृषभवाहन और पार्वती से मंडित अर्धांगवाला, भस्म से युक्त शरीरवाला शिव हुआ । तृतीय दिन गरुड़ के ऊपर चढा हुआ, चार भुजाओंवाला और
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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