________________
उपदेश-प्रासाद
-
भाग १
१४८
तृतीय स्तंभ
अब पंचम तप-प्रभावक कहा जाता है
विविध तपस्याओं के द्वारा जैन-धर्म प्रकाशक वें पंचम तपस्वी प्रभावक भव्यों के द्वारा जाने जायें ।
-
इस विषय में यह काष्ठ - मुनि का उदाहरण हैं. राजगृह में काष्ठ नामक श्रेष्ठी था । उसकी पत्नी वज्रा कुलटा थी । पुत्र देवप्रिय लेख-शाला में पढ़ता था । श्रेष्ठी के घर में तोता, सारिका और मुर्गा तीनों ही संतान के समान थे तथा स्व-गृह में एक ब्राह्मण-पुत्र को रखा था ।
एक बार श्रेष्ठी, स्त्री और तोते को स्व-गृह का भार देकर लक्ष्मी के लिए विदेश में चला गया । अब ब्राह्मण के यौवन प्राप्त होने पर वज्रा उसके साथ सौख्य को भोगने लगी । उन दोनों को संयुक्त देखकर सारिका ने तोते से कहा- पाप से युक्त इन दोनों को हम दोनों निवारण करें । तोते ने कहा
-
मूर्खों को उपदेश क्रोध के लिए होता हैं, शान्ति के लिए नहीं । सर्पों का दूध-पान केवल विष-वर्द्धन करता हैं । अब समय नहीं हैं । सारिका ने कहा
शीघ्र ही तुम मेरे सद्भाव को सुनो । मेरा अकाल में भी मरण श्रेष्ठ है, किन्तु मेरे रक्षक के घर में ऐसे अकार्य को देखने के लिए मैं समर्थ नहीं हूँ ।
इस प्रकार से कहती हुई वह सारिका वज्रा के द्वारा अग्नि में डाली गयी । उससे तोता मौन रहा । एक बार श्रेष्ठी के घर में तपस्वी - युगल भिक्षा के लिए आया । एक वृद्ध ने छोटे के आगे इस प्रकार से कहा- जो इस मुर्गे का मंजरी से युक्त सिर को खायगा वह राजा होगा । परदे के मध्य में से उस लडके ने उनके वचन को सुन लिया।