SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ १४७ होता हुआ भी वह साधुओं में प्रभावशाली नहीं हुआ । श्रावकों में रोगों को उत्पन्न करने लगा । श्रावकों ने गुरु से विज्ञप्ति की । गुरु ने श्रावकों को पढ़ने के लिए उपसर्गहर स्तोत्र दिया । उससे वह व्यंतर लेश-मात्र भी प्रभावित करने के लिए समर्थ नहीं हुआ । आज भी उस स्तोत्र का स्मरण विघ्न आदि का विनाश करता हैं । पाँचवें श्रुतकेवली भद्रबाहु बहुत जीवों को प्रतिबोधित कर स्वर्ग में गयें । श्रीभद्रबाहु गुरु ने शुभ निमित्त के बल से राजा को प्रतिबोधित किया था । तुम्हारे द्वारा भी शासन की उन्नति के लिए शीघ्र ही उनमें स्व-प्रयत्न करना चाहिए । इस प्रकार संवत्सर-दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद की वृत्ति में इस द्वितीय स्तंभ में तीसवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ। यह द्वितीय स्तंभ समाप्त हुआ।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy