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________________ દદ उपदेश-प्रासाद - भाग १ सौगत ने क्लेश से रहित धर्म को कहा हैं । तथा कपिल ब्राह्मण आदि भी विषयों का उपभोग करतें हुए ही पर भव में भी सुख से युक्त होतें हैं यह धर्म भी अत्यंत श्रेष्ठ हैं, इस प्रकार की विचारणा सम्यग्दर्शन को दूषित करती हैं, यह अर्थ हैं । भावार्थ जितशत्रु राजा और मंत्री के दृष्टांत से जानें और वह यह है - __ कल्याणों से युक्त वसंतपुर हैं । वहाँ जितशत्रु राजा था और उसका मतिसागर नामक मंत्री था। एक बार राजा ने चंद्र किरण के समान धवल दो घोड़ों को देखकर प्रसन्न हुआ उनके स्वामी को मूल्य देकर ग्रहण कीये । उनकी परीक्षा के लिए राजा मंत्री के साथ में घोड़े के ऊपर बैठकर मंडली भ्रम आदि गति को कराने लगा । तब पवन के वेग का तिरस्कार करनेवालें और कुशिष्य के समान विपरीत शिक्षित कीये हुए उन दोनों घोड़ों ने राजा और मंत्री को भयंकर अरण्य में गिरा दिया । वहाँ श्रम से पीड़ित हुए और भूखें उन दोनों ने वर्ति फल और कन्द आदि का आहार करते हुए बहुत दिन व्यतीत कीये । कितने ही दिनों के बाद स्व-सैनिकों के मिल जाने पर वें दोनों अपने नगर में गये । राजा ने जड़पने से रसोईयों को सर्व धान्य आदि पकाने को कहा । रसोईयों ने भी अलग-अलग सर्व अन्न पका कर राजा के आगे रखा । जैसे वाड़वा-अग्नि जल को वैसे ही स्वेच्छा से भूख से कृश उदरवाला वह राजा भी आहार करता हुआ असुर के समान तृप्ति को प्राप्त नहीं हो रहा था। राजा अत्याहार से रात्रि में शूल से मरण को प्राप्त हुआ और मंत्री पथ्य का भोजन करनेवाला वान्ति और विरेचन आदि कर सौख्य-भागी हुआ । अर्थात् निराकांक्ष पथ्य अन्न से सुख-भागी हुआ था।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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