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________________ ६५ उपदेश-प्रासाद - भाग १ के सिवाय अन्य पिष्ट को नहीं, स्नान में उष्ण पानी के आठ मिट्टी के कलशों को, ऊँचे और नीचे परिधान में दो पट्टकूल वस्त्र, विलेपन में चंदन, अगर, कर्पूर और कुंकम के बिना अन्य नहीं, पुष्पों में पुंडरीक और मालती-पुष्प, आभूषण में नाम से युक्त अंगूठी और कानों के दो आभरण, तथा धूप में अगुरु और तुरुष्क । पेय में आहार-प्रकार में काष्ठ-पेय नामक जो मूंग से युक्त हैं, घी में तले हुए चावलों से बने पेय को, पक्वान में घेबर और शष्कुली आदि, ओदनों में कलमशालि से निष्पन्न हुए, द्विदलों में मुझे मूंग, उडद, काले चने के आकारवालें हो, घी में शरद्-ऋतु में उत्पन्न हुआ गाय का घी ही, सागों में चूचू, सौवस्तिक और मंडूकिका हो, मधुरों में मुझे पल्यंक का साग हो, अन्नों में वडें, फलों में क्षीरामलक, जलों में आकाश का पानी ही हो, मुखवास के लिए मुझे जाईफल, लविंग, इलायची, कक्कोल और कर्पूर, इन पाँचों से संस्कृत किया गया तांबूल हो । जिन के समीप में इस व्रत को अंगीकार किया, इस प्रकार उसने अन्तिम व्रत तक स्वीकार किया । व्रत का स्वरूप आगे कहा जायगा । तत्त्व को जाननेवाला वह स्व-भवन में आकर शिवानन्दा से कहने लगामैंने परम आर्हत-धर्म को स्वीकार किया हैं । तुम भी सम्यक् प्रकार से जिन के समीप में धर्मको अंगीकार करो । इसे सुनकर वह सखीयों से घेरी हुई वहाँ जाकर और प्रभु को नमस्कार कर जिन के द्वारा कहे धर्म को प्राप्त किया । देश-चारित्र में तत्पर उन दोनों को चौदह वर्ष व्यतीत हुए। वह अन्य दिन रात्रि के समय में निद्रा रहित हुआ धर्म-चिन्ता को करने लगा कि-अहो! मेरा आयुष्य राग-द्वेष से व्यतीत हुआहैं। जैसे कि लोक मेरी वार्ता को पूछते हैं कि तुझे शरीर में कुशल हैं ? कहाँ से कुशल ? हमारी आयु दिन-दिन घट रही हैं।
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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