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________________ 600 “सांच को आंच नहीं” (0902 पुरोवचन __ - आ. जयसुंदरसूरिजी म.सा. कदाचित् कोई पूछ ले कि “गगन में सर्य-चन्द्र चमकते है” - इसमें क्या प्रमाण ? शास्त्र में कहां लिखा है ? अनादिकाल से तो वह नहीं थे अब यकायक कहाँ से आ गये ? कीन से आप्तपुरुषो ने सूर्यचन्द्र का प्रचार किया ? सूर्य-चन्द्र की मान्यता अधिकतर कितनी प्राचीन होगी ? उन मान्यता में पीछे से क्या-क्या परिवर्तन हुआ ? आदि - आदि । - अहो ! ये प्रश्न कितने गहरे है, कितने कठिन है ? क्या किसी सामान्य पुरुष की गुंजाईश है ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने की ? ऐसे तात्त्विक (!) प्रश्न करने वालों को तो हाथ जोड़कर यही कहना पड़ेगा, भाई (!) तुम्हारे प्रश्न बहुत गहन हैं, कोई सर्वज्ञ ही उनका समाधान कर सकता है। ठीक इसी प्रकार १६ वी शताब्दी में जैन शासन में मूर्तिपूजा के गहन विषय में भी ऐसे ही प्रश्नों की परम्परा बनाई गयी । बहुत से धुरंधर पण्डितोने उन प्रश्नो के उत्तर देने का साहस किया, लेकिन प्रश्नकर्ता वर्ग को संतोष हो ऐसा उन तात्त्विक (!) ओर अति गहन (!) प्रश्नों का समाधान कौन करे ? आखिर उन लोगों ने मान लिया - मूर्ति पूजा गलत है, अशास्त्रीय है, आधुनिक है, उसमें किसी आप्तपुरुषों की सम्मति नहीं है। . .. बस ! एक नया सम्प्रदाय बन गया, कुछ नाम रख लिया, कुछ वेष बना लिया, झुकने वाले मिल गये जो झुकाने वालों की तरकीब या शरम से छूट न पाए । कुछ शास्त्र मान लिए और कुछ उनकी मनघडंत मान्यताओं के प्रतिकूल थे, उन्हें छोड़ दिये, कुछ नये शास्त्र भी बना लिए, हो गया। भगवान महावीर की मूर्ति को छोड़ दिया, नाम लेने के अधिकार को तो बड़े चाव से सुरक्षित रखा। __ इतिहास के पन्ने उलटाओ, उसमें तो हर जगह मूर्ति-पूजा का ही समर्थन मिलेगा । इतिहास भी उन लोगों ने नया ही बना लिया, जिसमें से -
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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