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________________ 4600 “सांच को आंच नहीं” (09602 "गुंजार की प्रस्तावना की समीक्षा" “जैसी दे वैसी मिले, कुए की गुंजार” पुस्तिका देख्नने में आयी । पूरे जोर से लेखक महाशय जिस पुस्तिका का प्रचार कर रहे है, वह पुस्तिका "जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा” के प्रकाशन से उभरी द्वेषाग्नि के फल स्वरुप है। 'जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा' पुस्तक, रतनलालजी डोसी के 'जैनागम विरुद्ध मूर्तिपूजा' के जवाब स्वरुप है । उसमें दिए गए जवाब लगभग शिष्ट भाषा में हैं । जैसी दे.... गुंजार में 'जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा' पुस्तक के उत्तर का अंश मात्र भी नहीं है, परंतु दुसरी - दुसरी बातें करके पुस्तिका पूरी की है । तथा पुस्तिका के लेखक श्री अपने स्वभाव अनुसार गाली - गलोच की भाषा में यह पुस्तिका निकाली है । लेखक की विद्वत्ता तो तभी कहलाती, जब शालीन भाषा में उसका उत्तर देते परंतु वह उनसे असंभव होने से कीचड उछालने का काम किया है। _____ दैनिक व्यवहार, मनोविज्ञान, इतिहास एवं जैनागम से सिद्ध ऐसी मूर्तिपूजा की, प्रशांत मुद्रावाली एवं शांति का संदेश देनेवाली जिन प्रतिमा की जी भरके निंदा, पूर्व महापुरुषों की निंदा एवं उनके उपर झूठे आरोप के महापाप से लेखक को चारित्र का त्याग कर संसार में आना पडा । परंतु रे अज्ञान ! तेरा कैसा माहात्म्य है कि तू विद्धान कहे जानेवाले व्यक्ति को भी मिथ्यात्व में भ्रमित रखकर दुसरे निमित्तों में फसाता है। . लेखक श्री मुख्य पृष्ठ पर लिखते है “मूर्तिपूजा एवं जैन धर्म तथा हाथपत्ती के आगम विरुद्ध होने की सिद्धि”, यह उनकी प्रतिज्ञा सरासर झूठ हैं, क्योंकि पूरी पुस्तिका में एक भी आगमिक प्रमाण लेखक श्री नहीं बता सके हैं । कोरी डींगे हाककर भोली प्रजा-अज्ञानी लोगों को फसाने के काम किए है । जो आगे समालोचना में प्रगट होंगे। __ पृष्ठ नं. २ में आप लिखते हैं “धूर्तों की धूर्ताई और सडे दिमागवालों = 2
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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