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________________ G006 “सांच को आंच नहीं" (0902 प्रश्न-२० का उत्तर :- प्रश्न (१७) और (२०) दोनों एक ही प्रश्न है। प्रश्न-२१ का उत्तर :- प्रश्न (१६) और (२१ दोनों एक ही प्रश्न हैं, परंतु धूर्तता से प्रश्नों की संख्या बढाने की चेष्टा लेखक ने की है, ऐसा लगता है। प्रश्न-२२ का उत्तर :- इसका जवाब प्रश्न ५,६,७ के दिये हुए जवाब एवं पीछे प्रकरणों में कल्पसूत्र की प्रामाणिकता की सिद्धि के प्रस्ताव में आ जाता है, वहाँ से समझ लेना चाहिए । एक ही प्रश्न बार-बार, घुमा फिराकर पुंछना, लेखक की निर्बलता को सूचित करता है। ___ प्रश्न-२३ का उत्तर :- इस प्रश्न का खुलासा प्रश्न (१४) एवं (१९) के महानिशीथ सूत्र की सिद्धि के प्रस्ताव में दिया जा चुका है । इसी प्रश्न में लेखक जिन्हें शुद्ध प्ररूपक मान रहे है ऐसे भवभीरु, एकावतारी सूरिपुरंदर हरिभद्रसूरिजी ने ही महानिशीथ सूत्र की सिद्धि उपधान पंचाशक में की है। प्रश्न-२४ का उत्तर :- लिपिकाल में भूल हुई है, ऐसा ठोस प्रमाणों से सिद्ध किये बिना, यह पाठ सही है, यह गलत है, ऐसा मानना अपनी फुटपट्टी जैसी बुद्धि से समुद्र के विस्तार को नापने जैसा है। लेखक की तरह ही, स्वच्छन्दमति धारक स्थानकवासी संत मंत्री श्री फुलचंदजी (पुप्फभिक्खु) ने मनस्वी रीति से ‘सुत्तागमे' में आगमों के पाठों को फेरबदल करने की चेष्टा की थी, जिसे स्थानकवासी श्रमणसंघ की कार्यवाहक समिति ने भी अप्रमाणित घोषित किया था । स्थानकवासी समाज द्वारा अप्रमाणित घोषित की हुई उसी चेष्टा को पुनः प्रामाणिकता की छाप लगाने की मानसिकता को धारण करते हुए लेखक क्या भगवान के शासन एवं शास्त्रों के साथ-साथ स्थानकवासी समाज के भी गद्दार तो नहीं बन गये दुसरी बात काल के कारण नष्ट हो रहे श्रुत को यथावत् संरक्षित रखने का आचार्यों की परंपरा ने अथाग प्रयास किया है, अत: जगह-जगह पर पाठान्तरों के निर्देश, पूर्व की प्राचीन टीका आदि के उल्लेख वगैरह प्रामाणिक रूप से किये गये भी है । स्वयं महाविद्धान टीकाकार भी मूलपाठ का लेखक = 97 -
SR No.006136
Book TitleSanch Ko Aanch Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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