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-600 “सांच को आंच नहीं” (09002 उस बेबुनियाद सम्प्रदाय को छोड़ दिया और मूर्ति-पूजा के पक्के समर्थक बन गये।
१६ वी, १७ वी, १८ वी शताब्दियों में हो गये अगणित आचार्य-मुनियों ने मूर्तिपूजा में अगणित प्रमाण देते हुए अनेक निबन्धों की रचना की । मूर्तिपूजा के खिलाफ जितने भी प्रश्न हो सकते हैं उन सभी का शास्त्रानुसारी तर्कगर्भित समाधान करने के लिए आज तो प्रचुर मात्रा में साहित्य, पुरातत्त्व, शास्त्रपाठ और प्राचीन साक्ष्य उपलब्ध है । तटस्थ बुद्धि से पर्यालोचन करने वालों को शुद्ध तत्त्व निर्णय करने के लिए प्रचुर सामग्री उपलब्ध है । इतना होते हुए भी मूर्तिपूजा के विद्वेष से उसके खिलाफ लिखने वाले लेखकों की आज कमी नहीं है, यद्यपि ऐतिहासिक तथ्यों की तोड़-मोड़ किये बिना यह सम्भव ही नहीं है। . भूषण शाह ने ऐसी तोड़-मोड़ करने वाले लेखकों की कुचेष्टा का पर्दा फाश करने का इस पुस्तक में एक सराहनीय कौशलपूर्ण विद्वद्गम्य प्रयास किया है इसमें सन्देह नहीं है । इससे तटस्थ इतिहास के जिज्ञासुओं को सत्य-तथ्य की उपलब्धि होगी, भावभीरुवर्ग को दिशा परिवर्तन की प्रेरणा भी मिलेगी, उत्पथगामियों को सत्यमार्ग का प्रकाश मिलेगा। ___ मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त और आत्मोन्नति के लिए आवश्यक एवं अनिवार्य है, इस तथ्य की सिद्धि में हजारों प्रमाण मौजूद है । मूर्तिपूजा को प्रमाणित करने वाले आचार्यों में उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज का नाम अग्रसर स्मरणीय है । स्थानकवासी सम्प्रदाय में भी आज इनके जैन-तर्कभाषा आदि ग्रन्थों की बड़ी प्रतिष्ठा है । प्रतिमाशतक, प्रतिमास्थापनन्याय, कूपदृष्टान्त विशदीकरण, उपदेशरहस्य, षोड़शक टीका इत्यादि ग्रन्थों में जिन अकाट्य प्रमाणों का निर्देश किया है, उनके सामने सभी स्थानकवासियों का मुंह आज तक बन्द ही रहा है। किसी ने भी उनके खिलाफ कुछ भी लिखने की हिम्मत आज तक नहीं की है।
मूर्तिपूजा के समर्थक और भी कई ग्रन्थ है जिनमें ये प्रमुख हैं - वाचक