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________________ co.cc/000000 88888888888888888888888888888888 इस दुनियामें भी देखिए-जल-घास आदि पर ही जीने वाले गाय-बैल इत्यादि प्राणी क्रूर नहीं कहलाते और मात्र उन जीवों की हिंसा के कारण नरकमें नहीं जाते (यदि दूसरा बडा पाप नहो तो) जबकि हिरण-बकरे आदि को मारनेवाले शेर-बाघ आदि प्राणी क्रूर-हिंसक कहलातें हैं और इसी हिंसा के कारण ज्यादातर नरकमें जाते हैं। मनुष्योमें भी बकरे को मारने वाला जितना क्रूर-कठोर होता है, उतना जल-फूल की हिंसा करनेवाला कतई नहीं होता यह सभी जानते और मानते हैं। और उल्टा भी देखिये - पुजा के लिये जल-फुल की हिंसा करनेवाले मूर्तिपूजक श्रावकों से पूजा न करनेवाले श्रावक ज्यादा दयालु होते है, ऐसा भी कोई नियम नहीं। सीधी बात है, जहाँ करोडोका हिसाब नहीं वहाँ पैसे की क्या विसात ? हर एक श्रावक अपने सांसरिक कार्यों के लिये एकेन्द्रिय जीवों की इतनी हिंसा करता है कि पूजा के लिये होती हुई हिंसा कुछ भी नहीं है। उससे, उसके दया के परिणाम पर कोई असर नहीं होती। उल्टा पूजा के लिये स्नानादि करने में शास्त्रोक्त जयणा के पालन की इच्छा रखने से प्रयत्न करने से दया के परिणाम जागृत होने की संभावना ज्यादा है। __ हाँ, जिनके जीवनमें अपने लिये भी एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा नहीं है, एकेन्द्रिय जीवों की विराधना से भी जिनका हृदय आर्त हो जाता है, ऐसे साधु भगवंतो के लिये, पूजा के कारण की हुई जल-फूल की हिंसा भी दया के परिणाम पर असर करनेवाली होती है, इसलिये उन्हें द्रव्यपूजा का निषेध किया गया है। तात्पर्य यह है कि निर्दोष जीवनचर्या एवं निरंतर जीवदया के पालन से साधु का हृदय इतना कोमल बन जाता है कि जरा सी भी एकेन्द्रिय जीव की विराधना उनके हृदय को आर्त कर देती है। पूजा के लिये भी वे विराधना करें, तो विराधना का भाव ही उनके मनमें हावी हो जाता है। इसलिये उनके लिये द्रव्यपूजा निषिध्द है। इतना ही नही, जिन्होंने दिनभर के लिये सभी आरंभ समारंभ का त्याग कर दिया है ऐसे पौषध लेने वाले श्रावकों को भी द्रव्यपूजा नहीं करनी है। क्योंकि पौषध में भी द्रव्यपूजा के लिये विराधना करने पर हिंसा का विचार ही मनमें हावी होता है। प्रश्न : यदि पूजा करने में हिंसा होते हुए भी लाभ ज्यादा है तो फिर साधु भगवंत क्यों पुजा नही करते?
SR No.006135
Book TitleKya Jinpuja Karna Paap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhayshekharsuri
PublisherSambhavnath Jain Yuvak Mandal
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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