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- प्रतिमा० ॥२२॥ अर्थ श्री दशवकालिक सूत्रके कर्ता श्री स्वयंभवसूरि को शान्तिनाथजी को प्रतिमा देख के प्रतिबोअ हुआयत्-सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमादसणण पडिबुद्ध ।
और इसी सूत्र के अध्य० 8 गा0 55 ।। यत् वित्तर्भाित ण गिज्झाए । नारि वा सुअलंकियं । भक्खर पिव दटठणं । दिठि पडिसमाहरे ।। 55 ॥ .. ___ मतलब जिस मकान में स्त्रियों के चित्राम बने होवे साधु उस मकान में नहीं रहे।
विद्वानों को विचार करना चाहिये । जब स्त्री की मति (चित्र) से विषय विकार उत्पन होवे तो श्री वीतराग की निविकार शांतमुद्रा के दर्शन से वैराग्य उत्पन्न क्यों नहीं होवे ? अवश्य होवे । आगे अणुयोगद्वार में (जाणग शरीर०) - यत्-जहा को दिढतो अयं घयकुम्भे आसो अयं महुकुम्भे आसा से तं जाणयसरीर ।
जैसे जंबुद्वीप पन्नत्ति में - श्री रिषभदेव भगवान मोक्ष पधारे उनके शरीर को इन्द्रादिक ने वन्दन पूजन करी ।
भविय सरोर पाठ
यत्-जहा को दिढतो अयं महुकुम्भे भविस्सइ अयं घयकुम्भे भघिस्सइ से तं भविय सीर ।