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प्रिय ! प्रभावती राणी का अधिकार इसी मुजब स्थानक - वासीयों की प्राचीन शास्त्र की प्रतों में है । उनमें से करीब 20-25 प्रत मेरे पास मौजूद हैं। यदि कुछ शका हो तो देख लो ।
और इसी अध्ययन गाथा 35 में सगर चक्की के 60000 पुत्रों ने अष्टापद तीर्थ की रक्षा के वास्ते खाइ खोदी इत्यादि सम्बन्ध है । उसका भी ( स्थान०) व्याख्यान में वाचते हैं। फिर न जाने ये लोग प्रतिमा किस वास्ते नहीं मानते हैं ?
आगे अ० 29 मा बोल 73 में से 15 वां चैत्यवंदना का फल -
यत् -- टीकार्थ- प्रत्याख्यानानंतर चेत्यवन्दना कार्या । अथएतत्फल प्रश्न पूर्वमाह ( वयथुइ मंगलंग भते ! जीवे कि जणयेइ ? थथथुइ मंगलेण नाणदसण चरित-तत्तबोहिलाभ जणयइ, नाणदंसण चरितबोहि लाभ संपन्न य जीवे अन्तकिरिमं कष्पविमाणोववत्तियं आराहण आराहेइ १५ )
भावार्थ - चैत्य वन्दन का फल नाण दर्शन चरित्र बोधबीज का लाभ होता है । वोध बीज के लाभ से जीव अन्तक्रिया (मोक्ष कल्पविमानोत्पत्तिकां आराधना आराधयति ) ।
प्रिय ! यह चैत्य वन्दन से यावत् मोक्ष कहा है। अब तो आप सन्तोष कर इस वीर वचनों को आराधो । जैसा सूत्र में वैसा प्रतिमा छत्तीसी में | 20 |
दशवेकालिक सिज्जं भवभट्ट । प्रतिमाथी प्रतिबोधजी ॥ जणगर्भावियशरोर निक्षेपा । अणुयोगद्वार त्यो जोयजी ||