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तब शक्रेन्द्र के आदेश से देवों ने तीन चैत्य थूभ कराई है। सूत्र पाठ. - यत् खिप्पामेवभो देवाणुप्पिया सम्वरयणामए महइमहालए तओचेइयथुभेकरेह । एगं भगवओ तित्थगरस्स चिइगाए एगं गणहरचिइगाए एगं अवसेसा अणगाराणं चिइगाए
टीकार्थ-सर्वस्पष्टं । नवरं सर्वात्मनारत्नमयान अन्तर्बहिरपिरत्नखचितान महातिमहतोऽति विस्तीर्णानआलप्रत्ययः स्वार्थिकःप्राकृतप्रभवः,त्रीन, चैत्यस्तूपान् चैत्याश्चित्तालाद• काः स्तूपाश्चत्य स्वरूपास्तान कुरुत चितात्रयक्षितिष्वित्यर्थ आज्ञा करण सूत्रे।
टब्बार्थ-इन्द्र कहे उतावलो अहो देवानुप्रिय ! सर्व रत्नमय मोटा अत्यंत विस्तीर्ण एहवा त्रीणिस्थूभकरो। एक भगवंत तीर्थकरनी चयने विषय, एक गणधर नी चयने विषय, एक अवशेषकता साधु नी चयने विषय, तिवारइं ते घणा देवता जाव स्थूभ करे ।
(प्रश्न ) यह तो देवता का. जीत आचार है । परन्तु धर्म नहीं । सूत्र में धर्म कहा होवे तो मूल सूत्र पाठ बतलाना चाहिए।
(उत्तर) प्रिय ! अव्वल तो यह समझो. जोत आचार किस को कहते हैं ? सो सुनो। जोत (याने) अवश्यमेव करने का काम । जैसे श्रावक समायक प्रतिक्रमण करे सो जोत प्राचार है और तुम कहते हो कि मूल पाठ बतलाना था, सो लो सुनो...: केई जिणभत्तीए केई जीअमेअंतिकट्ट केई धम्मोत्ति कट्ट गेण्हंति ।