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________________ ( 73 ) हैं । प्रियवर ! जैन श्वेताम्बर दिगम्बर विसी आचार्य ने अंबड अलावे ' अरिहन्तइयाणि वा' का अर्थ साधु किया हो तो हम को प्रमाण है । परन्तु किसी आचार्य ने ऐसा अर्थ नहीं किया है। जो ए. पी. उक्त आचार्य महाराज का ग्रन्थ सच मानना कबूल करता हो तो हम श्री कुन्दकुन्दाचार्य के बनाये बहुत ग्रन्थों में श्री जिन प्रतिमा साधु श्रावक को वन्दनी पजनी दिखला देवें। वर्तमान में भी दिगम्बर जैनी जिन प्रतिमा को मानते हैं । कहो अब तेरा चूर्ण किस हवा में उड गया ? और भी भ्रम रहा हो तो सुनो भग० स० 3 उ० 1 चमरेन्द्र अधिकार [णण्णत्थ अरहते वा अरहंतचेइयाणि वा अणगारे वाभावियप्पाणो] इसमें साधुका तीसरा पाठ अलग है। . प्रिय ए. पी.' ! तू किस लाल लपेटा में आ गया?ले सुन ! सूत्र में साधु के 13 नाम कहे हैं। श्री सुगडायंग सूत्र अ० 13- - . 1 समणेति वा 2 माहणेति वा 3 खंतेति वा 4 दन्तेति वा 5 गरोति वा 6 पूतेति वा 7 इसिति वा 8 मुणोति वा १ कित्तीति वा 10 विदुति वा 11 भिक्खुति वा 12 लू हेतिवा १३ तीरीतिवा इति । देखो गणधर महाराजने साधु के तेरह नाम कहे हैं । परंतु चौदमा (अरिहंतोइयाणि वा) नहीं कहा। अब भी कुछ भ्रम रहा है ? [पूर्व पक्ष ] अरिहन्त और प्रतिमा वन्दनीक है, तब तो साधु अवन्दनीक ठहरेगा।
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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