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मूल सूत्र 'जाई मरण मोयणाए' इस पर श्री भद्रबाहु स्वामी कृत नियुक्ति शीलांकाचार्य कृत टीका है । श्रीजिनहंस सूरि कृत दीपिका-यत जातिमरणमोचनार्थकर्मावदते तत्र जात्यर्थकातिकेयवदनादिकाः क्रियाविधते यःकातिकेयं वंदते सःउत्तमजाति लभते तया यान 2 कामान् ब्राह्मणभ्यो ददाति तांस्तान अन्यजन्मनि लभते इत्यादि कुमार्गोपदेशात् हिसादी प्रवृति विदधाति. तथा मरणार्थ पितृपिंडदानादिषु अथवा ममानेन संबंधोव्यापादितस्तस्यवरनिर्यातनार्थ वधबन्धादीप्रवर्तते,यदि चामरणनिवत्यर्थमात्मानो दुर्गाद्यपयाचितमजादिनाबलि वि. धत्ते तथा मक्त्यर्थं अज्ञानावृतचेतसः पंचाग्नितपोनुष्ठानादिषु प्राण्युपमर्दकारिषु प्रवर्तमानाः कर्माददते, यादव जातिमरणयोर्मोचताय हिंसादिकाः क्रियाः कुर्वते ।
देखो ! मिथ्याति जिनआज्ञा विपरात मृतपिंड, यज्ञ,होम,पंचअग्नि आदि क्रिया करे। उसे धर्म कहे। उनको बोधबीज नहीं मिले। परन्तु ऐसा नहीं कहा कि मन्दिर स्थानक कराने वाला। बंधव ! 'इतना तो विचार करना चाहिए,जो जैनी भगवान की भक्ति करता "हो उसका बोधबीज का नाश हो जाये तो क्या भगवान को नहीं मानें - गालियां दे, निन्दा करे, वचन उत्थापे उनको समकित प्रावेगा ? अपि तु कभी नहीं। ... प्रिय ! सुगडांग या प्रश्न व्याकरण में नारकी को परमाधामी पूर्व भव में करी मिथ्यात् को क्रिया उद्देश के मार देते हैं परन्तुं ऐसा नहीं कहते कि तू ने पूर्वभव में जिन मन्दिर बनाया