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प्रथं भगवती सूत्र शतक 3 उ० 1 चमर इंद्र के अधिकार में तीन सरणा पाठ
यत्-णणत्थ अरहंते वा अरहंत येइयाणि वा अणगारे वा भावियप्पाणो जोसाए उड्ड उप्पयइ जाव सोहम्मे कथ्ये ।
भावार्थ- शक्रेन्द्र विचार करता हुआ "चमरइंद्र भी प्रपनी शक्ति से सुधर्म कल्प देवलोक में नहीं था सके सूत्र अब इतना अवश्य है कि अरिहंत । अरिहंतों की प्रतिमा- 2 अणगार भावित आत्मा का धणी की, नेश्राय (सरणों) से ऊर्द्ध लोक में पा सकता है ।"
ए तीनों शरणों में से कोई एक शरणा लेके चमरइंद्र ऊर्द्धतक में जा सकता है । परन्तु ये नहीं समझना की एक सरणा लेके जावे तो बाकी -2 शरणा निष्फल हैं ।
तीन शरणो में से चमरइन्द्र अरिहंत वीर प्रभु का शरणा लेकर गया है प्रोर जिन प्रतिमा तथा प्रणवार का सरमा लेके भी जा सकते हैं ।
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जैसा अरिहंतों का प्रभाव और प्रासातना है तैसे ही जिनप्रतिमा का प्रभाव और आशातना है । इसीसे ही 3 सरणा, असातना 2 ही कही है । पाठः स 331
बत्-महा दुक्ख खलु तहारूवाणं अरहंताचं । भगवंताणं अणगाराणं व अच्चासायणयाए ।