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( 36 ) मानना ठीक है। जिससे भगवान की आज्ञा और आप का नेम दोनों भी रह जावे, अस्तु ।
पाठको ! ठाणांग ठाणा 10 तथा समवायंग दोनों सूत्र में स्थापनाचार्य का लेख था। सो हमने बता दिया हैं,और आवश्यकसूत्र में प्रतिक्रमण विधि में भी स्थापनाचार्य कहा है । 4 ज्ञान 14 पूर्वधारी श्री भद्रबाहु स्वामी ने स्थापना कुलक में स्थापनाचार्य का विधि का प्रतिपादन अच्छी तरह से किया है । वो कुलक भी मौजूद है । अस्तु ।
आगे जंघाचारण मुनि जिन प्रतिमा वन्दन को जावे, जिस का सूत्र अर्थ हम लिख आये हैं । उस पर (ए. पी.) ने गालियों का ही मजा उड़ाया है और मुझे अभव्य श्रेणी में दर्ज किया इत्यादि । पाठको ! जरा शास्त्र का प्रमाण देके गालियां देता तो वाचक वर्ग को कुछ सन्तोष होता । बेचारे भव्य प्रभव्य का निर्णय केवली भगवान सिवाय कोई नहीं कर सकते हैं ये बात जैन सिद्धान्त में प्रसिद्ध है। प्राप और आप के गुरुजी गोशाला जमालीवत् केवली बण गये हो तो जैसा उनका दरजा वैसा ही आप का समझा जावेगा । जेन शासन अखबार का (स्वप्न) का लेख पढ़के ही प्रापकी कदाग्नि भडकी हो । बंधव ! कदाचित् (स्वप्न) सत्य हो जावे तो वो श्री केवलो महाराज के मुखारविंद का फरमाया हुमा है । खैर ! माप मुझे अभवी कहें, परन्तु में तो सब जीवों को कहता हूं कि माप जिन शासन के रसिक हो के अपनी प्रात्मा का कल्याण करें ।।5।। शतक तोजो उद्देसो पहेलो, भगवती में सारजी। चमर इन्द्र सरणा लइ जावे, अरिहंत बिन अणगारजी
प्रतिमा० ॥6॥