________________
( 34 )
जातमुद्रा जन्म अवसरे बालक नी परे बलंटाभरिहाथ जोडि रही कृतकर्म वांदणा 12 आवर्त छ छ वेला गुरू ने पगे वांदणा कीजे । अहो काय काय ए पाठ कहि बिहुला थइ 12 आवर्तन थया । चोसरां 4 वेला गुरूने पगे मस्तक नमाडीये । त्रगुप्ती मन वचन कायानी गुप्त कीजै उपदेश बेवेला वांदणाने अर्थे अवग्रहमाहि आवेने एक निखमण अवग्रहबाहिरि पहले वांदणे एकवेला निकली बोजी वेला गुरू पगे बेठा ज वणीस माफिक एह पाठ कहा एह समवायंग वृत्तिनो भाव | इसमें स्थापना आचार्य खुलासे कहा है ।
जंघाचारण विद्याचारण मुनि जिनप्रतिमा वांदणे को जाते हैं। सूत्र समवायंग ठा. “17 मूल पाठ । इमोसे जं रयणष्पभाए पुढवीए बहुसम रमणिज्जाउ भूमिभागाउ सातिरेगाइ सत्तरस जायण सहस्साइ उड्ड उप्पेइता ततो पच्छा चारणाण तिरियगती पावतिनि
अर्थ - टीका में बहुत विस्तार है ।
अर्थ - स्थानकवासियों का माना हुआ टब्बा |
* श्रये इणी ए रत्नप्रभा पृथ्वी विषे घणी रमणीक समभूमि मान छ तेहे क्की काझेरी के कोस अधिक सतरे जोजन सहस्र लगे उचे उत्पतति उडीने ए तले लवण समुद्रनी शिखालगे उंचा उप्पतति तिवारें पछे जघाचारण विद्याचारणनीतिरछीगति पर्वत तले तिरछी द्विपे रुचिक द्वीपे एम मंदीश्वरद्वीपे जिन प्रतिमा वादिवां बाई जंसा सूत्रार्थ में था वैसा ही प्रतिमां छत्तीसी में लिखा है ।
तदपि (ए.पी.) कहते हैं " गुरु की वंदना देती स्थापनाचार्य नहीं हैं इत्यादि "