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________________ ( 33 ) विस्तार 7 वीं गाथा के अर्थ में देखो । अर्थ - जंघाचारण मुनि दूजे उत्पात में नंदीश्वर द्वीप में समोसरण करे । वहां के चेत्य (प्रतिमा) को वन्दे । बन्धव ! ये गोल मोल है कि मूल सूत्र का पाठ है ' आगे लिखा है कि "सूत्र पाठ नहीं लिखेगा तो अनन्ता तीर्थंकरों का चोर' इत्यादि । प्रिय बन्धव ! अनन्ते तीर्थकर गणधर के फरमाये हुए सूत्र पाठ मैंने लिख दिया है। इसको नहीं माने वो ही चोर है । सत्य का डंका रणकार करता ही रहेगा इति ॥ 4 ॥ थापनाचारज चोथे अंगे, द्वादश ठाणामाँयजी । सत्तरमे समवायंगे जंधाचारण, प्रतिमा वंदन जायजी ।प्र. 51 अर्थ - समवायग सूत्र का बारमा समवायंग का पाठ - यत् - वुवालसावले कित्सिक्कम्मे प. तं. दुओणयं जहाज. यं कित्तिरुम्मं वारसावत्तं चोउ सिरे तिगुत्ते दुपवेसं एग निक्खमणा अर्थ — स्थानकवासियों का माना हुआ टब्बा अर्थ- बारे प्रावतं मांहे ते कृतिकर्म-वांदणा कहा । भगवंत श्री वर्द्धमान स्वामी एते है अवनत बेवेला मस्तक नमाडवो, गुरुनी थापना कीजं । तेह की उठ हाथ वेगला रही पडिक्कमोए, अउठ हाथमांहि भवग्रह कहिये । उभाथका इच्छामि खमासमणो कहिए बिहं वांदणे बिहु वेला मस्तक नमाजिये । पछे अवग्रहमाँहि आवीये । यथा ·
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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