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________________ ( 103 ) (तिण्णाणं तारयाणं ) है। परन्तु आप तो डुबार्ण डुबा वीयाणं । बन बैठे हैं । ज्यादा आपको क्या विशेषण देना चाहिये । बत्तीस सूत्रों में प्रतिमा बोल । चतरां ले लो जोयगी। भावदया मुज घटमां व्यापी, उपकारबुद्धि छे मोयजी ।। ॥प्र. 35॥ अर्थ-बत्तीस सूत्रों में प्रतिमा का अधिकार है, सो हमने बतला दिया है । वो चतुर पुरुष जान गये होंगे । प्रिय ! मेरे किसी से द्वेष भाव नहीं है । बल्कि कितने हा भद्रीक जीव उलटे रास्ते जा रहे हैं । उन्हीं पर भाव दया ला के उपगार बुद्धि से ही प्रतिमा छत्तीसो बनाई थी। जिस के मोहकर्म का क्षयोपशम होगा वही इस बात को धारण करेगा । मेरा तो कहना है कि सर्व जीव जिन शासन के रहस्य का पान करो और आत्म कल्याण करो! करो !! करो !!!जल्दी करो ।। 35 ।। प्रतिमा छत्तीसी सुणो भवि प्राणी । हृदये करो विनार पंथ छोडो समकित आराधो। पामो भवनो पारजो ॥प्र.36 अर्थ-प्रतिमा छत्तीसी सुन के हृदय में विचार करो। परन्तु जब तक पक्षपात है तब तक सोधामार्ग मिलना दूर है। इसी वास्ते पक्षपात छोड़ के जिनवचनों पर आस्था रखें तो संसार से जल्दी पार हो जावे ।। 36 ।। इति । कलश:-रायसिद्धारथ वंशभूषण, त्रिशला देवी मायजी। .. शासन नायक तार्थ ओसीया, रत्न विजय प्रणमे पायजो॥ साल बहत्तर जेठ मासे, सुद पञ्चमी गुरुवार जी । गयवर सरणो लियो तेरो, सफल भयो अवतारजी ॥37॥
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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