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और उन सभी को यदि सत्य प्यारा है तो-"मैं पूर्व में मूर्तिपूजा का विरोध कर रहा था, अब मुझे सच्ची समझ आ गयी है, फिर भी मैं मूर्ति-पूजा का समर्थन कैसे कर सकता हूं? मूर्ति का समर्थन करने पर तो मेरी मान हानि होगी।" इस प्रकार का पक्षमोह या अहम् बीच में नहीं लाकर असत्यपूर्ण स्थानक मार्ग को हिम्मत से त्यागकर देना चाहिए और अपनी आत्मा को दुर्गति के भयंकर अनर्थ से बचा लेना चाहिए। आखिर तो पक्षमोह छोड़कर आत्म-कल्याण साधना ही सच्चा धर्म है।
इस पूरे लेख को बार-बार पढ़ें। हमें आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि इस लेख को बार-बार पढ़ने वाला कोई भी स्थानकवासी मुमुक्षु सत्य का पक्षधर बनकर जिन-मन्दिर, जिनमूर्ति
और मूर्ति-पूजा को स्वीकार करेगा ही। आखिर तो सत्य का ही जय-विजय होता है। - इस लेख में परम-कल्याणकारी, परमश्रद्धया जिनाज्ञा के विपरीत कुछ भी लिखा गया हो तो उसका तीन करण तथा तीन योग से मिच्छामिदुक्कड़म्।
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