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बाँधनी चाहिए, तो ही नाक से निकलती हुई गरम श्वांस से वायुकायजीवों की हिंसा बन्द हो सकती है। यानी यदि जीवदया की सच्ची भावना स्थानकवासी संतों को है, तो उन्हें मुँहपत्ति मुँह के साथ नाक पर भी बांधनी चाहिए। _____ एक प्रश्न : मुखवस्त्रिका की धुलाई कर उसे डोरी पर सुखाई जाती है, उस वक्त मुखवस्त्रिका का नाम मुखवस्त्रिका ही होता है? या अन्य कुछ? इस प्रश्न का उत्तर देवें।
दूसरा प्रश्न : एक स्थानकवासी सन्त यदि मुँह पर मुखवस्त्रिका बांधकर जीवन भर जिन-मन्दिर, जिणधर, जिणपडिमा, चैत्यवंदन, चैत्य, धुंभ तीर्थ, तीर्थ यात्रा इत्यादि के विषय में असत्य ही असत्य बोलता रहता है, तो उसका वचन सावध होता है या निरवद्य? इस प्रश्न का उत्तर श्री नेमिचन्द जी क्या देंगे? यह लिखें। लोकाशाह ने उन्मार्गका प्रचार किया था।
जैन धर्म में प्रतिमा पूजा अनन्तकाल से चल रही है, जिसकी गवाह आगमशास्त्र तथा उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफा और गिरनार जी, शत्रुजय, सम्मेतशिखरजी पर्वत दे रहे हैं। जैन धर्म में मूर्तिपूजा का विरोधमुसलमान सैय्यद की चाल में फंसकर सबसे प्रथम करीब 400-450 वर्ष पूर्व हुएलोकाशाह नामक एक मिथ्यामति जैन श्रावक ने किया था। तब से यह अनागमिक स्थानक मार्ग निकला है जिसने जैन धर्म को अपार नुकसान पहुंचाया है।
लोकाशाह के पूर्व में जिन मन्दिर, मूर्ति पूजा, चैत्यवन्दन का विरोध किसी ने भी नहीं किया है। लोकाशाह से निकला हुआ यह स्थानक पन्थ अनागमिक है।
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