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ज्ञान- पञ्चमी
गुरुवाणी - ३
सुधन भी ज्ञानी था । उसने कहा- महाराज ! अब सब कुछ मेरी समझ में आ गया है। यदि इस तरह ज्ञान हो तो, मनुष्य के आचरण में भी कभी आ सकता है। ये सूरि भगवन्त अन्य कोई नहीं किन्तु रत्नाकर पच्चीसी के प्रणेता रत्नाकरसूरिजी महाराज थे।
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ज्ञान पञ्चमी के दिन सौ-पचास रुपयों से ज्ञान की पूजा करेंगे; किन्तु उसके भीतर क्या लिखा हुआ है उसको देखने का अवकाश भी नहीं है ।
जीव में जीव जैसा दर्शन, याने जीव में शिव जैसा दर्शन, याने
शिव में शिव जैसा दर्शन, याने
- बोधि
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- समाधि
- सिद्धि