________________
गुरुवाणी - ३
कृतज्ञता
२२५
हैं। बहुत से लोग उठने के साथ ही धरती माता के उपकार को याद कर उसको हाथ जोड़ते हैं। धरती को हाथ लगाकर अपने ललाट पर लगाते हैं और इस प्रकार से उसका बहुमान करते हैं। हमें आश्रय देने वाला कौन है ? धरती माता ही है न! तुम यदि सब में गुण देखने का प्रयत्न करोगे तो तुमको सभी स्थलों में गुण और उपकार ही दिखाई देंगे। हम कितने जीवों के उपकारों से दबे हुए हैं और इन उपकारियों का ही हम बेदर्द होकर नाश कर रहे हैं। चिन्तन करोगे तो सत्य हाथ में आवेगा । षट्काय जीवों की सहायता के बिना हमारी गाड़ी चल नहीं सकती, यह हकीकत है किन्तु उसका व्यय आवश्यकता के अनुसार ही करें।
कृतज्ञी कुमारपाल
पर
महाराजा कुमारपाल के जीवन में यह गुण अच्छी तरह से समाया हुआ था। एक समय उनकी ऐसी विषम परिस्थिति आ गयी थी कि चना और मुरमुरे भी फांकने को नहीं मिलते थे। गाँव-गाँव भटकते हुए भागदौड़ करते थे । सिद्धराज के सैनिक उनको मारने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़े हुए थे। हत्यारों को खबर पड़ी कि कुमारपाल इस गाँव में है तो उन्होंने सारे गाँव को घेर लिया। कुमारपाल किसी कुम्हार के घर के पास खड़े थे। उनको समाचार प्राप्त हुए कि हत्यारे लोग आ पहुँचे हैं। वे झट से कुम्हार के घर में गए। कुम्हार से कहते हैं मुझे कहीं छुपा लो, कुम्हार उन्हें छुपावे कहाँ? कुम्हार ने कहा - भट्टे को सुलगाने के लिए मैंने कांटे लाकर जहाँ ढेर लगाया है। तुम उसके नीचे छुप जाओ, मैं तुम्हारे ऊपर और कांटे डाल देता हूँ । मरता क्या नहीं करता, कुमारपाल काँटों के नीचे छिप गये। खबर मिलने पर हत्यारे ढूंढते हुए उस कुम्हार के घर पर आ पहुंचे। सारा घर घूमकर देख लिया। कांटों के ढेर को कौन छूने जाए? जाएं तो कांटे लगे इसलिए वहाँ कोई गया नहीं और कुमारपाल पूर्ण रूप से बच गये। हत्यारे चले गए उसके बाद कुम्हार ने बड़ी सावधानी से उनको बाहर निकाला। वे मार्ग में जा रहे थे। उस समय उनको बहुत तेज भूख लगने लगी, पास में कुछ खाने को नहीं था । उसी रास्ते पर एक