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________________ गुरुवाणी-३ १८९ वृद्धानुग हों। ये वृद्ध ही योग्य हैं । मनुष्य जैसा आश्रय लेता है, वैसा ही बन जाता है। चाहे जितना भी पानी मधुर हो किन्तु उसके साथ नमक का सम्पर्क हो जाए तो वह खारा (कड़वा जहर) बन जाता है । वही यदि शक्कर का संसर्ग करेगा तो? मीठा बन जाएगा न ! परिवर्तनशील जगत - सुबुद्धि मन्त्री की कथा एक सुबुद्धि नाम का मन्त्री था। श्रावक धर्म का पालन करता था। नाम के अनुसार ही गुणों को भी धारण किया हुआ था। राज्य का मन्त्री जैसा होगा उसी प्रकार उसके राज्य की स्थिति होगी। मन्त्रियों के आधार पर ही राज्य चलता है। राजा मन्त्रीलोचन कहलाते थे। राजा लोग नियमित रूप से बाहर नहीं निकलते थे। मन्त्री ही बाहर की खोज-खबर रखते थे और वास्तविक समाचार से राजा को अवगत कराते थे। मन्त्री उच्च विचारों का होगा तो राज्य भी जल्दी ही उन्नति करेगा। एक दिन राजा और मन्त्री दोनों ही घूमने के लिए निकलते हैं। गाँव के बाहर बहुत बड़ा गढ्ढा था। सारे गाँव के गटर का पानी उसमें मिलता था। उधर से ही राजा और मन्त्री निकलते हैं । गड्ढे में से भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी। राजा ने नाक बन्द किया। मन्त्री तो उसी प्रकार की स्वस्थता से वहाँ होता हुआ आगे चला। राजा ने कुछ दूर जाने पर कहा - मन्त्रिश्वर ! वहाँ भभगती हुई दुर्गन्ध से तुम्हारा नाक फट नहीं गया, तुम्हें कुछ नहीं हुआ, ऐसा कैसे? मन्त्री कहता है - हे राजन् ! जगत के समस्त पदार्थों के भाव परिवर्तनशील होते हैं। आज की खराब से खराब वस्तु भी कल अच्छी बन जाती है और कल की अच्छी से अच्छी वस्तु भी आज खराब बन जाती है। सुन्दर से सुन्दर स्वादिष्ट भोजन भी असूचि पदार्थ बन जाता है। अच्छे से अच्छा कपड़ा भी समय बीतने पर सफाई करने का वस्त्र बन जाता है। अच्छे में से खराब और खराब में से अच्छा होना, यह तो चलता ही रहता है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने कहा है -
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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