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________________ २३० * माता-पिता का उपकार २१७/ * परहित चिन्तक * विनयी पुत्र की आकुलता २१७/ * विचारों का चमत्कार....! २३१ * जैसी करणी वैसी भरणी २१८ * विचारों के पुण्य से राजा बना २३३ कृतज्ञता:- २२०-२२७ / * जीवदया प्रेमी-भणसाली २३५ * शिष्य बनना सहज है २२० लब्ध लक्ष्यः- २३७-२४० * यहाँ ही स्वर्ग है २२१/ * भगवान की दया अर्थात् क्या? २३७ * भर्ता का उपकार २२२/ * सफल होने के पाँच कारण २३८ * उपकार का बदला! २२३ दीपावली पर्वः- २४१-२४८ * धर्माचार्य का उपकार २२३/ * पुण्यपाल राजा के आठ स्वप्न २४२ * अनन्त उपकारी षट्काय जीव २२४ * जैसे के साथ तैसा * कृतज्ञी कुमारपाल २२५ * पाँचवें आरे का स्वरूप २४७ * कुंभार टुकड़े की आयम्बिल * छडे आरे का स्वरूप २४७ शाला २२६ ज्ञानपंचमी:- २४९-२५३ परहित चिन्तकः- २२८-२३६ * अज्ञानता से भटकती आत्मा २४९ * संज्ञा में डूबा हुआ जगत २२८ * अंधेरे को दूर करता हुआ कुटुम्ब २४९ * शिवभक्त संन्यासी २२८ * समस्त क्रियाओं का मूल श्रद्धा है २५१ * धर्म की संज्ञा में डूब जाओ __ २२९ * रत्नाकरसूरि महाराज २४६ * * २५३ *
SR No.006131
Book TitleGuru Vani Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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