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________________ गुरुवाणी-२ पर्युषणा - द्वितीय दिन लुटेरे आपको परेशान न करें। केवल इतना ही नहीं किन्तु मदीना जाकर वस्तुपाल ने चांदी का तोरण चढ़ाया। यह सब कुछ धर्म के लिए किया। हज करके वापिस लौटे। दिल्ली तक छोड़ने के लिए वस्तुपाल साथ जाता है। वस्तुपाल नगर के बाहर डेरा डालता है। बादशाह की माँ नगर में आती है। बादशाह से मिलती है। बादशाह पूछता है - माँ! हज कर आयी, यात्रा अच्छी तरह से पूर्ण हुई, किसी प्रकार की तकलीफ तो नहीं हुई। माँ कहती है - पुत्र! तू तो यहाँ बैठा-बैठा राज करता है। मेरे असली पुत्र ने मुझे हज करवाया। मेरी सब प्रकार से सार-संभाल रखी और मुझे यहाँ तक छोड़ने आया। बादशाह कहता है - माँ! तुम्हारा वह असली पुत्र कौन है? उसको तुम साथ क्यों नहीं लाई? माँ ने कहा - वह नगर के बाहर डेरा डालकर ठहरा हुआ है। बादशाह वस्तुपाल को सभा में बुलाता है। सन्मान कर कहता है - तुमने मेरी माँ की खूब सार-संभाल की। मैं प्रसन्न हूँ। जो चाहो सो माँग लो। वस्तुपाल कहता है - हे राजन् ! मुझे अन्य किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है किन्तु मम्माणी खदान में से पत्थर चाहिए। बादशाह ने कहा - बस, माँग-माँग कर पत्थर माँगा? अरे! कुछ जमीन, जायदाद, जवाहरात माँगते । वस्तुपाल ने कहा- बस आपकी कृपा चाहिए। पत्थर निकालने की आज्ञा मिल गई। खदान में से पाँच पत्थर निकाले गये। उन पत्थरों का गाँव-गाँव में सामैया हुआ। वाजते-गाजते पूजा के साथ ये पत्थर गिरिराज पर लाए गये और वहाँ तलघर में रखे गये। इस पत्थर में से दादा की मूर्ति किस प्रकार बनी? आगे देखिए। शत्रुजय का १५वाँ उद्धार .... पेथड़ शाह ने शत्रुजय पर स्वर्ण पट्टी से मढा मन्दिर बनवाया। उस समय मुगल बादशाह का राज्य चल रहा था। चौहदवीं शताब्दी के मध्य में अलाउद्दीन खिलजी का शासनकाल था। उसने अनेकों जिन-मन्दिरों को भूलुंठित करवा दिया था। वह १ लाख सैनिकों के साथ शत्रुजय पर चढ़ा । मन्दिरों को लूटने लगा। स्वर्ण की पट्टियों को निकाल लिया। इतना
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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