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________________ पर्युषणा - द्वितीय दिन गुरुवाणी-२ रह जाएँ । वहाँ पुनडशाह नाम के समृद्धिमान सेठ दिल्ली से संघ लेकर आए थे। वस्तुपाल ने उनसे कहा - आपके बादशाह के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं, वहाँ दिल्ली में मम्माणी नाम के पत्थर की खान है। उसमें से मूर्ति के लिए पत्थर दिलाओ। वह पत्थर यहाँ लाकर रखेंगे तो भविष्य में अपने साधर्मिकों को किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी। पुनडशाह ने कहा- देलूँगा। मूर्तिभंजक बादशाह के पास से मूर्ति के लिए कैसे पत्थर प्राप्त किया जा सकता है? वस्तुपाल राज्य में लौटे पर उनके हृदय में दादा की प्रतिमा के लिए पत्थर कैसे प्राप्त किया जाए, इसका चिन्तन चालू रहा। प्रभु के लिए पाषाण प्राप्त किया .... ___ उसी समय में दिल्ली के बादशाह की अम्मा मक्का-मदीना में हज करने के लिए दल-बल के साथ निकली थी।खम्भात-बंदर पहुँची। वस्तुपाल ने अपने सैनिकों को आदेश दिया - जाओ, बादशाह की माँ को लूट लो और समस्त माल के साथ मेरे सामने उपस्थित करो। बादशाह की माँ को लूटना यह जान जोखिम का कार्य था। जो बादशाह को खबर पड़ जाए तो बात प्राणों पर आ जाए। फिर भी धर्म के लिए वस्तुपाल जोखिम को उठाता है। वस्तुपाल के सैनिकों ने उनको लूट लिया। वस्तुपाल के पास शिकायत करती हुई बादशाह की माँ आई। वस्तुपाल बोले - माँ, आप तनिक भी चिन्ता न करें। लूटेरों को तुरन्त ही पकड़ लिया जाएगा। किसकी शक्ति है कि आपको लूट सके? मै आपका समस्त मालअसबाब आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दूंगा। आप आराम करिए। बादशाह की माँ तो ऐसे विवेकपूर्ण उत्तर से अत्यन्त प्रसन्न हुई। स्वयं के आदमियों के द्वारा लूट का कार्य हुआ था अतः समस्त माल हाजिर कर दिया गया। छोटी से छोटी चीज भी प्रस्तुत कर दी गई। बादशाह की माँ तो खुशी के मारे पागल हो गई। वस्तुपाल ने कहा - माँ, मै अब तुम्हें अकेला नहीं जाने दूंगा। मै भी आपके साथ हज करने के लिए चलँगा। बीच मे छोटे-मोटे
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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