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पर्युषणा - प्रथम दिन
गुरुवाणी-२
देव उत्तर देते हैं - हे कुमारपाल ! तुझे कुष्ठ रोग देने वाली देवी को मैंने बांध दिया है । वह छूटने के लिए छटपटाहट करती हुई रो रही है । : तीनों व्यक्ति देवी के पास आते हैं और कहते हैं - हे देवी! तुम प्रतिज्ञा करो कि आज से मैं भोग नहीं लूंगी। साथ ही राज्य में कहीं भी हिंसा होगी तो उसकी सूचना मैं तुमको दूँगी। देवी के स्वीकार करने के बाद उसे बन्धनमुक्त कर दिया जाता है । कुमारपाल महाराजा रोगमुक्त बनते हैं । इस प्रकार अहिंसा में अडिग रहकर अपने राज्य में से मारि शब्द को देश निकाला दे दिया । कुमारपाल महाराजा के समय सुवर्ण युग था। आगामी चौवीसी में श्रेणिक महाराज तीर्थंकर बनेंगे और कुमारपाल महाराजा उनके गणधर बनेंगे ।
इस प्रकार हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल महाराजा के द्वारा चारों ओर अहिंसा का झण्डा लहराया । अहिंसा को शस्त्र बनाकर लड़ने वाले महात्मा गांधी और हेमचन्द्रसूरि जी दोनों मोढवणिक थे । मोढ जाति के लिए यह कहावत है- अंगे होजो कोढ़ पण पड़ोसमां न होजो मोढ़ । मोढ़ बहुत शक्तिशाली होते हैं। हेमचन्द्रसूरिजी महाराज ने अनेक राजाओं द्वारा अहिंसा का ध्वज फैलाया और गाँधीजी ने अहिंसा के माध्यम से लड़ाई लड़कर भारत देश को बंधन मुक्त किया । पूज्य विजयहीरसूरिजी महाराज .
जब चारों ओर हिंसा का साम्राज्य फैल रहा था, उस समय विजयहीरसूरिजी महाराज हुए। उस समय प्रह्लादनपुर जिसे आज पालनपुर कहते हैं, वहाँ पल्लविया पार्श्वनाथ की खूब महिमा / प्रभाव था । जैनों की आबादी भी बहुत थी । पल्लविया पार्श्वनाथ के मन्दिर में ६४ मण चावल और १६ मण सुपारी चढ़ती थी। ऐसी जाहोजलाली वाले नगर में प्रसिद्ध ओसवाल वंशीय श्रेष्ठिवर्य श्री कुराशाह प्रभावशाली व्यक्ति रहते थे । वे धर्मपरायण थे। उनकी धर्मपत्नी नाथीबाई भी उतनी ही धर्मप्रेमी थी। धर्मपरायण इस परिवार में विक्रम संवत् १५८३ मार्गशीर्ष सुदि नवमी के
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