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________________ पर्युषणा-प्रथम दिन भादवा वदि १२ पर्व का स्थान .... आज महामंगलकारी पर्युषण का पहला दिन है। तुम्हारे यहाँ जब दिवाली आती है तो तुम लोग घर को साफ सुथरा कर रंग-रोगन आदि से दर्शनीय बनाते हो न! उसी प्रकार आज इस महापर्व की पधरामणी हुई है। आज आप सभी लोगों को मन रूपी घर में छाए हुए अनादि काल के रागद्वेष रूपी जालों को साफ करना है। ज्ञानी भगवन्त कहते हैं - पर्व की आराधना तभी सफल होती है जबकि विश्व के समस्त जीवों के साथ हम मैत्री भाव की स्थापना करते हैं । इस पर्व का मुख्य अंग ही क्षमापना है। शास्त्रकारों ने इस दिन को पर्व का रूप दिया है। इस दिन क्षमायाचना करते हुए किसी को आश्चर्य नहीं होता है। जिस प्रकार नववर्ष के प्रारम्भ में सब लोग यह वर्ष आपके लिए भाग्यशाली हो इस प्रकार कहकर अभिनन्दन करते हैं । उस दिन ऐसा प्रतीत नहीं होता की यह व्यक्ति आज हमारे यहाँ क्यों आया है? क्योंकि उस पर्व के दिन ही सब लोग वर्ष का अभिनन्दन करते हैं । उसी प्रकार इस क्षमापना पर्व के दिन एक दूसरों को हाथ जोड़ क्षमापना करते हैं, वहाँ जाते हुए न तो लज्जा आती है और न हीनता का भाव आता है। पर्युषण का शब्दार्थ .... पर्युषण शब्द वैसे तो अन्तिम दिन के लिए ही प्रयुक्त होता है किन्तु प्रारम्भ के दिन भी उससे सम्बन्धित होने के कारण हम लोग आठ दिन का पर्युषण कहते हैं। पूर्व के समय में साधुगण नवकल्पी विहार करते थे। एक स्थान पर एक महीना रहते थे, इस प्रकार आठ महीनों के आठ स्थानों के आठकल्पों को मासकल्प कहते थे। नौवाँ कल्प पर्युषणा कल्प कहलाता था। परि अर्थात् एक साथ, उषणा अर्थात् निवास। एक
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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