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________________ गुरुवाणी-२ अशठता कैसे पधार सकते हैं? माँ-बाप जीते जागते देव हैं किन्तु आज इस युग में जिस प्रकार मौसम के अनुसार पलंग का स्थान बदल दिया जाता है, सर्दी में कमरे में सोते हैं, गर्मी में जहाँ ठंडी-ठंडी हवा आती हो ऐसे स्थान पर सोते हैं और चौमासे में जहाँ भीगने का डर न हो वैसे स्थान पर चले जाते हैं। उसी प्रकार आज माँ-बाप के जितने पुत्र हों उतने ही उनके मकान और व्यवस्थायें होती हैं। प्राचीन काल में भोजक (गायन द्वारा भगवान् की भक्ति करने वाले) के लिए दिन निश्चित होते थे उसी प्रकार आज माँ-बाप के लिए भी बारी-बारी से नम्बर आता है। अत्यन्त ही करुण और खेदजनक स्थिति है आज के वृद्ध मनुष्यों की। तीर्थंकर परमात्मा भी सर्वदा माता-पिता को नमस्कार करने के लिए जाते थे। कहावत है - जे मातनो बोल कदी न लोपे, ते विश्वमांहि सूरज जेम ओपे। अर्थात् जो माता-पिता की आज्ञा का कभी भी उल्लंघन नहीं करता है वह सूर्य के समान शोभा प्राप्त करता है। लाल बहादुर शास्त्री पूर्ण रूप से मातृभक्त थे। जब भी वे बाहर जाते अथवा अन्य देशों से वार्ता करने के लिए जाते थे तो उससे पूर्व स्वयं के वृद्ध माता-पिता का आशीर्वाद अवश्य लेते थे। उस समय माता कहती थी - हे वत्स! ईश्वर तुम्हारे साथ रहे । बस इतना सा आशीर्वाद लेकर वे जाते थे और कठिन से कठिन काम भी सरलता के साथ करके आते थे। एक समय पाकिस्तान के मुख्यमन्त्री अय्युबखान से मिलने के लिए जाना था। लाल बहादुर शास्त्री भी माँ का आशीर्वाद लेकर निकले। अय्युबखान लम्बे डील-डौल के आदमी थे और शास्त्रीजी ठिगने थे। अय्युबखान ने मजाक में कहा - शास्त्रीजी, आप तो बहुत वामन हैं । शास्त्रीजी ने तत्काल ही निर्भीक होकर उत्तर दिया - इसीलिए तो आपको झुकना पड़ता है। लम्बे मनुष्य को ठिगने आदमी के साथ बात करते समय झुककर के बात करनी पड़ती है। ऐसे बेधड़क उत्तर देने की शक्ति माँ के आशीर्वाद से ही प्राप्त होती है। शास्त्रीजी ने बहुत कम समय राज्य किया किन्तु उन्होंने
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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