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प्रभु के साथ चित्त जोड़ो
गुरुवाणी - २ जाते हैं वहाँ भी हमारा मन संसार में ही लिप्त रहता है । समस्त प्रवृत्तियों में सिर्फ भगवान् ही छा जाने चाहिए जबकि उसके स्थान पर संसार छाया हुआ रहता है भगवान् का नाम लेने के लिए भी हमारे पास समय नहीं है। हम कोई प्रतिदिन लाखों का दान नहीं देते हैं अथवा सर्वदा कोई मासक्षमण नहीं करते हैं किन्तु भगवान् के नाम का स्मरण तो कर सकते हैं न?
प्रभु का नाम स्मरण सस्ता होने पर भी सक्षम है.
प्रकृति की हमारे ऊपर कितनी कृपा है कि वह स्वयं विचार करती है कि मैं हर वस्तु महँगी कर दूँगी तो मनुष्य किस प्रकार जीवनयापन करेगा? इसीलिए वह हमारे उपयोग में आने वाली अधिक से अधिक वस्तुओं को सस्ता बनाती है । क्या हवा-पानी के बिना कुछ समय भी हम रह सकते हैं? हम तो हवा के खूब पराधीन हो गये हैं। घंटा, आधा घंटा यदि बिजली चली जाए और पंखा बंद हो जाए तो हमारी कैसी दशा हो जाती है? एक-दो दिन पानी नहीं मिले तो हम कितना तूफान मचा देते हैं । अनाज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी है अत: सोने-चांदी की अपेक्षा वह सस्ता रखा है। सोना, चांदी और मोती कितने अधिक किमती हैं? किन्तु उनके बिना भी मनुष्य का काम चलता है। सोना-चांदी आदि हो ही ऐसी अपेक्षा नहीं होती है किन्तु अनाज, हवा, और पानी तो मिलना ही चाहिए। इन सबसे सस्ती और अत्यन्त उपयोगी वस्तु है - प्रभु का नाम स्मरण सद्विचारों में निवास । केवल विचारों में परिवर्तन की आवश्यकता है। पदार्थों के स्थान पर परमात्मा को स्थापित करना है, फिर देखो इस नाम का चमत्कार !
हम तो पदार्थों के दास बन गए हैं। यही कारण है कि हम ध्यान करते हैं तो ध्यान में भी वे ही पदार्थ नजर आते हैं। पदार्थों के स्थान पर यदि हम अरिहन्त का ध्यान करते हैं तो अरिहन्त हमारी चेतना में आकर खड़े हो जाते हैं । चेतना एक ऐसी वस्तु है कि उसे जिस प्रकार का निमित्त