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________________ गुरुवाणी-२ ११७ दया बड़े भये तो क्या भये, जैसी लंबी खजूर पंछी को छाया नहीं, और फल लागत अतिदूर। मनुष्य के पास अमाप सम्पत्ति हो किन्तु वह ऊपर कही गई कहावत के अनुसार किसी के उपयोग में न आती हो तो वह किस काम की? सम्पत्ति वरदान के रूप में होनी चाहिए अन्यथा वह श्राप के रूप में बदल जाती है । तुम्हारी सम्पत्ति किस में से आ रही है इसका तुमने तनिक भी विचार किया? लाखों करोड़ो पशुओं का कत्लकर और उस माँस के निर्यात के बदले में दौलत मिलती है। उसके बदले में बड़ीबड़ी मशीनें लगाते हैं और उन मशीनों के उत्पादन से प्राप्त होने वाली सम्पत्ति तुम्हारे घर में आती है। मूलतः जरा गहराई से सोचो तो सही! असंख्य जीवों की हाय पर तुम्हारी सम्पत्ति खड़ी हुई है। इस विचित्र सरकार ने मनुष्य को दुर्दशाग्रस्त कर दिया है। निःश्वासों की नींव पर चुना गया तुम्हारे वैभव का बंगला कब तक टिकेगा? हम बाईस अभक्ष्य और बत्तीस अनन्तकाय का त्याग करते हैं, यह अच्छा है किन्तु इन असंख्य जीवों की हाय में से आया हुआ धन भी अभक्ष्य ही है। हाँ, संसार को चलाने के लिए और सम्मान के साथ रहने के लिए सबकुछ करना पड़ता है, करो। हम इसे तनिक भी अस्वीकार नहीं करते हैं, किन्तु पदार्थों को देखकर तुम उन पर ऐसे मूर्छाग्रस्त हो गये हो कि भगवान् की आज्ञा को भी कहीं का कहीं फेंक देते हों। निर्दय बनकर लोगों को लूट रहे हो, उसके सामने आपत्ति है। किसी को हजार या पाँच हजार का इन्जेक्शन लगवाना पड़े तो क्या उसको खुशी होगी? उस समय उसको ऐसा लगता है कि तुम तो पाँच-पच्चीस रुपये ही खाते हो जबकि मैं तो प्रतिदिन पाँच हजार के इन्जेक्शन खाता हूँ? नहीं, सम्पत्ति प्राप्त करनी पड़ती है तो प्रयत्न कर प्राप्त करते हैं। किसी को लूट कर प्रसन्नता नहीं होती। जो मनुष्य धर्म के रंग से रंगा हुआ होता है उसकी दूसरे पदार्थों में आसक्ति नहीं होती है। उदाहरण के तौर पर तुमने एक
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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