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________________ लज्जा भादवा सुदि १४ धर्म योग्य श्रावक का नौवाँ गुण .. जगत् के पदार्थों की चाहे जितनी खोज होगी, चाहे जितने पदार्थों को आँख में बसाने के लिए हम तैयार होंगे परन्तु यह कब तक? आँख मूंद जाने तक ही न? समस्त शोध कार्य भले आश्चर्यकारी लगते हों किन्तु अन्त में उनका मूल्य कुछ नहीं रहता। यह समस्त शोध-खोज कुछ समय तक और कुछ प्रश्नों का समाधान कर सकती है किन्तु जन्म-जन्म के प्रश्न का क्या समाधान कर सकती है? नहीं, प्रत्येक जन्म के प्रश्न का उत्तर देने की शक्ति केवल धर्म में ही है। दूसरा कोई भी पदार्थ कितना ही अमूल्य क्यों न हो किन्तु वह समाधान नहीं कर सकता। धर्म के लिए पहले पात्रता अर्जित कीजिए। शास्त्रकार कहते हैं कि पात्रता में सम्पत्ति अपने आप ही आ जाती है। योग्यता होगी तो मोक्ष भी स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा। इसमें कामना या कल्पना क्यों? तुम किसी वस्तु के पीछे मत पड़ो। सम्पत्ति स्वयं ही तुम्हारी खोज कर रही है। लक्ष्मी स्वयंवरा स्त्री के समान है। इसके पीछे पड़ोगे तो वह तुम्हें मिलने वाली नहीं है। आज का मनुष्य धर्म के स्थान पर धन के पीछे पागल बना हुआ है। कदाचित् कोई जीवात्मा धर्म की अभिलाषा करता है, किन्तु धर्म की वास्तविक पहचान नहीं होने के कारण उसी में फँस जाता है। धर्म के मूल में लज्जा .... किसी भी कार्य की नींव दृढ़ होनी चाहिए। अरे! टेबल पर चढ़कर किसी वस्तु को लेनी हो तो टेबल के पाए मजबूत होने चाहिए। उसके पाए यदि हिलने-डुलने वाले होंगे तो उसपर चढ़ने वाला गिरेगा ही न? मकान की नींव भी सुदृढ़ होनी चाहिए। उसी प्रकार तीनों लोको में सर्वोत्तम सुख प्राप्ति के लिए धर्म का पाया भी दृढ़ होना चाहिए।
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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