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________________ गुरुवाणी-२ सुदाक्षिण्यता ने बाहर छलांग लगाई और बाबाजी पर टूट पड़ी। बाबाजी जोर-जोर से चिल्लाने लगे किन्तु किसी भी शिष्य ने दरवाजा नहीं खोला। अन्त में लहूलुहान दशा में जैसे-तैसे द्वार तक पहुँचे। मरते-मरते बच गये। किस पाप से? कामवासना के पाप से ही न? आज हजारों युवक बरबाद हो रहे हैं। स्वयं के जीवन की महामूल्यवान पूंजी सदाचार को बरबाद/चौपट कर रहे हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है - Wealth is lost nothing is lost. Health is lost something is lost. Charactor is lost everything is lost. जिस मनुष्य ने सम्पत्ति खो दी है उसने कुछ भी खोया नहीं। जिस मनुष्य ने अपना स्वास्थ्य नाश किया है उसने कुछ नाश किया है किन्तु जिसने अपने सदाचार-शील को खो दिया है उसने सर्वस्व खो दिया है। स्वयं की वासना पूर्ण करने के लिए आज की युवा पीढ़ी, जाति या वंश अथवा रात-दिन कुछ भी नहीं देखती है। चाहे जैसा ओछे से ओछा निर्णय लेने को भी तैयार हो जाती है। इस तरफ राजा जैसा राजा भी अपने छोटे भाई को मारने के लिए तैयार हो गया। मन में जिस प्रकार के विचार जन्म लेते हैं उसी दिशा में विचारों के चक्र गतिमान हो जाते हैं, इसीलिए महापुरुष कहते हैं - मन को सदा शुभ भावों में रमण करते हुए रखो। अब भाई को मारना है तो कैसे मारा जाए? सर्वदा उसके छिद्रों को ढूंढता रहता है। एक समय कंडरीक शस्त्ररहित बेफिक्र होकर घूम रहा था। उसी समय मौका देखकर पंडरीक राजा ने पीछे से शस्त्र से वार किया। प्रचण्ड आवेश में घात करने पर एक ही झटके में कंडरीक के प्राणपखेरु उड़ गए। यशोभद्रा को अपने पति के मरण के समाचार मिले। प्रबल आघात से वह पागल सी हो गई। क्या करना? शील की रक्षा किस प्रकार करूँ। उसने विचार किया कि राजभवन में रहकर शील की रक्षा करना संभव नहीं है। प्राण-त्याग करके भी शील को खंडित नहीं होने दूंगी। रानी रातों-रात ही वहाँ से गुप्त रूप से भाग खड़ी हुई। भागते-भागते सावत्थी
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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