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________________ सुदाक्षिण्यता गुरुवाणी - २ ९८ वाक्य का पुंडरीक ने गलत अर्थ लगाया । वह समझा कि जब तक मेरा भाई जीवित है तब तक यह सुख मुझे नहीं मिल सकता। वासना मनुष्य को अधम से अधम कृत्य करने के लिए प्रेरित करती है । कामवासना के पाप में .... 1 एक बाबाजी थे । भगवान् के परम भक्त थे । एक समय किसी भक्त के यहाँ से भोजन का आमंत्रण आया । भक्त के यहाँ भोजन के लिए जाते हैं । जहाँ एक रूपवती युवान कन्या थी । यह कन्या बाबाजी के नजरों में चढ़ गई। दृष्टि निक्षेप होते ही वासना की आग भभक उठी । बाबाजी ने सोचा कि 'मैं बाबा हूँ' इसलिए कन्या तो माँग नहीं सकता, क्या करूँ? भक्त को कहते हैं - भाई ! तेरी यह कन्या बहुत ही दुर्भाग्य - शालिनी है। इस कन्या को तुम यदि अपने घर में रखोगे तो तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा और यदि इसका विवाह कर दिया तो दोनों परिवार खत्म हो जाएंगे। इसकी अपेक्षा तो यही अच्छा रहेगा कि इस कन्या को गंगा में पधरा दो। भक्त भी बहुत चालाक था । बाबाजी की दृष्टि को भांप गया था। उसने विचार किया ऐसे धर्म के नाम पर ढोंग करने वाले व्यक्ति को अच्छी तरह मजा चखाना चाहिए। बाबाजी अपनी कुटिया में चले गये। गंगा नदी के किनारे ही कुटिया थी । राह देखकर बैठे हुए थे कि नदी के पूर्व में कुछ बहता हुआ आता है क्या? इस ओर भक्त ने एक लकड़े की पेटी मंगवाई। उसमें एक बंदरिया को रखकर पेटी गंगा के प्रवाह में प्रवाहित कर दी। पेटी को आते हुए देखकर बाबाजी ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी, जाओ, उस पेटी को नदी के प्रवाह से निकालकर मेरी कुटिया में रख देना। शिष्यों ने नदी में छलांग लगाई और पेटी को निकालकर गुरु के कमरे में रख दी। बाबाजी ने कुटिया में जाने से पहले अपने शिष्यों से कहा - किसी प्रकार की जोर-जोर से चिल्लाहट भी हो तो दरवाजा मत खोलना । अच्छा गुरुजी ! बाबाजी तो कमरा बन्द करके पेटी खोलते हैं। ढक्कन खोलते ही पेटी के भीतर डालने से गुस्से से तमतमाती हुई बांदरी
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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