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________________ गणधरवाद गुरुवाणी-२ विचार चलते रहते हैं। भूतप्रेत लगे हो तो उनसे मुक्ति मिल सकती है, किन्तु इन पाँच महाभूतों से तो मोक्ष प्राप्त होने पर ही मुक्ति मिलती है। पदार्थों के सामने आने पर ही उस पर विचार प्रारम्भ होता है। अर्थात् ज्ञानोत्पन्न होता है। वही पदार्थ जब सामने से हट जाता है तो उसके सम्बन्ध का ज्ञान भी समाप्त हो जाता है। एक ही विचार में आत्मा चौवीसों घण्टे नहीं रहती है। पाँच भूतों में से उपयोग उत्पन्न होता है । पाँच भूत आत्मा नहीं है। पाँच भूतों से ही इस शरीर की उत्पत्ति होती है। इन्द्रभूति ने वेदवाक्य से ऐसा अर्थ समझ रखा था कि आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है। जबकि इसी वेद में याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी के संवाद में आत्मा नाम का तत्त्व जगत् में विद्यमान है ऐसा वर्णन आता है। ये दोनों वाक्य विरोधाभास उत्पन्न करते हैं। इन्द्रभूति इस संदेह का निराकरण करने के लिए किसी से पूछता नहीं है। किसी को पूछने पर तो स्वयं की सर्वज्ञता में कमी नजर आती है। इसीलिए शास्त्र पढ़ते हैं, पढ़ाते हैं किन्तु शंका का निवारण नहीं करते हैं। प्रभु का उत्तर.... भगवान् इन्द्रभूति गौतम को 'आत्मा है' यह समझाते हैं। पहले तो आत्मा को अनुमान से समझाते हैं । आत्मा भले ही नजरों से प्रत्यक्ष नजर नहीं आती किन्तु अनुमान से कहा जा सकता है कि यह आत्मा है। जिस प्रकार किसी घर में आग लगने पर भले ही अग्नि हमें न दिखाई पड़ती हो किन्तु धुएं के बादलों से हम कह सकते हैं कि वहाँ अग्नि है। उसी प्रकार अनुमान से कह सकते हैं कि यह आत्मा है। घड़ा मिट्टी के विशिष्ट आकार वाला एक पदार्थ है। इसको घड़ने वाला इस जगत् में कोई है? हाँ, कुम्हार। उसी प्रकार इस देह का निर्माण करने वाला भी कोई होगा न? एक ही माता हो, एक ही कुक्षी हो, फिर भी सन्तानों के मध्य में समानता क्यों नहीं? सबका निर्माण करने वाला अलग-अलग होना ही चाहिए और वह है आत्मा। इन्द्रियाँ आदान का साधन है और विषय आदेय है। विषयों
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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