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गुरुवाणी-२
तपाराधना किसने दिया? जिनेश्वर देवों ने ही! तो इनकी भक्ति हम कैसे भूल सकते हैं? उन्होंने अपुकम्पा धर्म का प्रतिपादन न किया होता तो आप गरीबों की सेवा भी किस प्रकार कर सकते थे? इसीलिए जिन मन्दिर और उसमें विराजमान जिनेश्वरों की भक्ति हमें उपकारीभाव और कृतज्ञता से सदा करनी चाहिए। पाँचम की चौथ ....
भगवान् के पास से हमने बहुत कुछ प्राप्त किया है अतः भगवान् के दर्शन भी संघ के साथ मिलकर करने चाहिए। वैसे तो पहले संवत्सरी पाँचमे की थी किन्तु चैत्यपरिपाटी के लिए ही पाँचम के स्थान पर चौथ की गई। कालिकाचार्य ने जिस नगर में चातुर्मास किया था वहाँ का राजा शालिवाहन आचार्य भगवान् का अनुरागी भक्त था। आचार्य भगवान् ने राजा शालिवाहन को चैत्यपरिपाटी में उपस्थित होने के लिए कहा, परन्तु राजा ने कहा – पांचम के दिन प्रजा का इन्द्र महोत्सव है इसलिए उस दिन पहले मैं इन्द्र महोत्सव में उपस्थित होऊंगा। यदि आप संवत्सरी दिन एक दिन आगे या पीछे कर लें तो मैं अवश्य सम्मिलित होऊंगा। नगर का राजा जिस पर्व में उपस्थित होता हो तो धर्म प्रभावना अधिक होती है ऐसा सोचकर आचार्य देव ने कहा - हे राजन् ! पाँचम के स्थान पर छट्ठ तो हम नहीं कर सकते किन्तु चौथ अवश्य कर सकते हैं। अर्थात् चौथ के दिन चैत्यपरिपाटी रख सकते हैं। राजा ने स्वीकार किया। इस प्रकार कालिकाचार्य ने पांचम के स्थान पर चौथ की।
यह शरीर आत्मा के रहने का घर है। इन्द्रियाँ इस घर के खिड़कीदरवाजे हैं। भीतर रहने वाला कोई दूसरा ही है वह है आत्मा। इन : खिड़की-दरवाजों द्वारा बाहर का देखा हुआ पदार्थ दरवाजा बंद होने !
पर भी स्मृति से ध्यान में आता है। इसीलिए कह सकते हैं कि शरीर से । आत्मा पृथक् है । अंदर कोई विद्यमान है इसीलिए तो अभी तक इस काया । । (शरीर) को जलाया नहीं गया।