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________________ ९४ प्रकृति से सौम्य गुरुवाणी-१ ४. बैठे-खड़े :- शरीर की शिथिलता के कारण कायोत्सर्ग बैठे-बैठे करते हुए भी विचारधारा अत्यन्त उन्नत हो। ५. बैठे-बैठे :- कायोत्सर्ग बैठे-बैठे करते हुए भी जिसकी विचारधारा निम्नकोटि की हो। ६. बैठे-सोये :- बैठे-बैठे कायोत्सर्ग करता हो किन्तु प्रमाद अथवा ___आर्तध्यान में डूबा हुआ हो। ७. सोया-खड़ा :- किसी बीमारी के कारण कायोत्सर्ग सोते हुए करता ___ हो किन्तु विचारधारा बहुत ही ऊँची चलती हो। ८. सोये-बैठे :- सोते-सोते कायोत्सर्ग करते हों और मन भटक रहा हो। ९. सोये-सोये :- सोये हुए कायोत्सर्ग कर रहा हो किन्तु वह पूर्ण रूप से अव्यवस्थित हो। इस प्रकार मनुष्य को समझकर धर्म करना चाहिए कि धार्मिक क्रिया मन के शुभ-अशुभ भावों (विचारों) के आधार पर ही फल देती है। सरलता.... धर्म करने वाला मनुष्य सरल प्रकृति का होना चाहिए। एक महिला किसी सन्त के पास जाती है और कहती है- हे महात्मन्! मेरे जीवन में शान्ति हो ऐसा कोई मन्त्र दीजिए। सन्त ने उसे एक मन्त्र लिखकर दिया। मन्त्र था- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । सन्त से मन्त्र को उसने अवश्य लिया किन्तु वह बहुत ही भोली थी। उसके पति का नाम वासुदेव था। उसने विचार किया- मैं अपने पति का नाम कैसे लेऊ? पहले के समय में पति का नाम कोई भी स्त्री नहीं लेती थी। इसीलिए उसने एक खोज करके रास्ता निकाल लिया। मन्त्र में कुछ फेर-बदल कर दिया - ॐ नमो भगवते बालक के पिताय। कैसी सरलता है? प्रतिछाया को नहीं, वस्तु को पकड़ो.... छट्ठ करके सात यात्रा करने वाला मनुष्य कितना कष्ट सहन करता है। वही मनुष्य पड़ौसी के साथ बोलचाल हो जाए तो उसके मकान की तीन सीढ़ियां चढ़कर उसे क्षमायाचना करने के लिए नहीं जा सकता,
SR No.006129
Book TitleGuru Vani Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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