________________
सूत्र संवेदना - ५
शांति - निमित्तं (शान्तिं) मन्त्रपदैः स्तौमि भगवान की मन्त्रपदों द्वारा स्तुति करता हूँ ।
६६
मैं शांति देनेवाले शांतिनाथ
शांति प्राप्त करने में निमित्त कारण शांतिनाथ भगवान हैं । यद्यपि जीव अपने शुभभाव से शांति को प्राप्त करते हैं, पर शुभभाव को प्रकट करने में कोई निमित्त भी अवश्य कार्य करता है । शांतिनाथ भगवान का स्मरण, वंदन, पूजा आदि शुभभावों को प्रगट करने के लिए पुष्ट आलंबन बन जाते हैं । इसलिए शांतिनाथ भगवान शांति के निमित्त कहलाते हैं ।
I
'ऐसे शांतिनाथ भगवान की मंत्र पदों से मैं स्तुति करता हूँ ।' ऐसा कहकर स्तवकार ने बताया है कि उन्होंने शांतिनाथ भगवान की स्तुति सामान्य शब्दों में नहीं की है; बल्कि शास्त्रों का अवगाहन कर, योग्य मंत्रों का संशोधन कर, मंत्रगर्भित पदों से की है । मंत्र अर्थात् शब्दों की एक विशिष्ट रचना, एक पाठसिद्ध शक्ति, जो देवाधिष्ठित होती है ।
जिज्ञासा : सामान्य शब्दों से भी शांतिनाथ भगवान की स्तवना हो सकती थी, तो यहाँ स्तवकार ने मंत्रगर्भित पदों से स्तवना क्यों की है ?
तृप्ति : प.पू. मानदेवसूरीश्वरजी महाराज ने व्यंतर के द्वारा किए गये उपद्रव को शांत करने के लिए इस स्तव की रचना की थी और दैविक उपद्रव दैविक शक्ति से ही शांत होते हैं, इसलिए प.पू. मानदेवसूरीश्वरजी महाराज ने उपद्रव को शांत करने के लिए आगम ग्रंथों का दोहन कर जिन मंत्रों के उच्चारण से जया - विजया जैसी देवियाँ प्रत्यक्ष होकर उपद्रव को शांत करें, ऐसे शक्तिशाली देवाधिकृत मंत्रों को ढूँढकर उन मंत्रों से इस स्तव की रचना की । इसीलिए इसमें