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________________ १०४ सूत्र संवेदना - ५ करते हैं। योग्य कार्य जानकर देव उपस्थित भी होते हैं और सत्कार्य में ज़रूरी वस्तु उपलब्ध करवाकर वे कार्यसिद्धि में सहायक बनते हैं । जैसे विमल मंत्री को मंदिर बनवाने के लिए जब संगेमरमर की ज़रूरत पड़ी, तब उन्होंने अंबिका देवी का स्मरण किया। माँ अंबिका वहाँ पहुँचीं और विमल मंत्री के मनोरथ पूर्ण किए। इसी प्रकार विजयादेवी भी किसी भी भव्य जीव के सभी उचित मनोरथों को पूर्ण करने का कार्य करती हैं, इसलिए वे 'कृतसिद्धा' भी कहलाती हैं। निर्वृति- निर्वाण- जननि 130 शांति और परम आनंद को प्राप्त करवानेवाली (हे देवी ! आपको नमस्कार हो ।) “हे देवी ! आप भव्य प्राणियों की निर्वृति अर्थात् चित्त की शांति और निर्वाण अर्थात् मोक्ष अथवा परम आनंद को प्राप्त करवानेवाली हैं । " देवी शासन, संघ और संयमी आत्माओं की सुरक्षा आदि विशिष्ट कार्य करने के साथ सामान्य भव्य जीवों के मोक्षमार्ग में आनेवाले विघ्नों को दूर करने का कार्य भी करती हैं । साधक को दृढ विश्वास होता है कि विजया देवी विघ्नों को अवश्य दूर करेंगी, इस कारण उनका स्मरण भी भव्य जीवों के चित्त को सुख देता है । यद्यपि परमानंद रूप मोक्ष स्वप्रयत्न साध्य है, उसमें किसी अन्य का प्रयत्न काम नहीं आता; फिर भी उस प्रयत्न में सहायता करने का कार्य निमित्त-भाव से अन्य व्यक्ति भी कर सकते हैं। जैसे खंधक मुनि के ५०० शिष्य गुरु के वचन के सहारे प्रयत्न करके मोक्ष में गए, वैसे ही अनंत जीव भगवान के वचनों के सहारे मोक्ष में गए हैं। इस 30. 'सत्त्वानां भव्यसत्त्वानां निर्वृतिनिर्वाणजननि' निर्वृतिश्चित्तसौख्यं निर्व्वाणं मोक्षं परमानन्दं वा जनयत्युत्पादयति या सा निर्वृतिनिर्व्वाणजननी तस्याः सम्बोधने धर्मे साहाय्यर्काद्धरणात् परम्पर या मोक्षमपि जनयति यदार्षं - सम्मदिट्ठि देवा दिन्तु समाहिं च बोहिं चेति वचनात् ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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